शिक्षा के अधिकार का फायदा होना चाहिए, नुकसान नहीं
लोकतंत्र में जनता को हर तरह का अधिकार होना ही चाहिए।इससे कोई इंकार कर ही नहीं सकता। जब भी जनता को कोई अधिकार दिया जाता है तो यह सोचकर दिया जाता है कि उसका फायदा ही होगा। अगर उससे पांच दस साल में पता चलता है कि इससे नुकसान हो रहा है तो इसका मतलब है कि जब अधिकार देने के विषय में सोचा गया था तो सभी पहलुओं पर सोचा नहीं गया था। सोचा गया होता तो होने वाले नुकसान के विषय में सोचा गया होता, उसे गंभीरता से लिया गया होता और ऐसी व्यवस्था की गई होती कि शिक्षा के अधिकार से जो नुकसान पिछले एक दो दशक में देश के बच्चों का हुआ है, वह नहीं हुआ होता।
शिक्षा का अधिकार का कानून देश में कांग्रेस सरकार के समय बनाया गया और २०१० में लागू हुआ।इसके तहत देश के बच्चों के लिए अनिवार्य व निशुल्क शिक्षा का व्यवस्था की गई थी यानी पहली से आठवीं तक सबको अनिवार्य और निशुल्क शिक्षा देने की व्यवस्था की गई थी।देखने में तो यह कांग्रेस सरकार की बड़ी उपलब्धि है, कांग्रेस नेता इसे अपनी उपलब्धियों में गिनाते भी है। इसका मकसद निश्चित रूप से देश में ज्यादा से ज्यादा बच्चों को शिक्षा देना रहा होगा, स्कूलों में बच्चों की संख्या भी बढ़ी होगी, शिक्षा के अधिकार में एक खामी रह गई कि इसमें बच्चों को फेल नहीं करना था। यानी पहली में भर्ती हुआ बच्चा आठवीं तक बिना फेल हुए पहुंच जाता है लेकिन अब पता चल रहा है कि उसे न तो हिंदी ठीक से लिखना आता है नहीं गणित के सरल सवाल वह कर सकता है। शिक्षा का अधिकार लागू होने के बाद के आंकड़ों से पता चलता है कि देश में आठवीं पास बच्चों की संख्या बहुत बढ़ी है लेकिन उनकी शिक्षा का स्तर पहली,दूसरी के बच्चे के समान भी नहीं है।
शिक्षा के अधिकार कानून के कारण शिक्षक बच्चों को फेल नहीं कर सकते थे, बच्चों को मालूम था कि वह फेल नहीं किए जाएंगे तो वह ठीक से पढ़ते नहीं थे,शिक्षक भी बच्चों की शिक्षा के प्रति गंभीर नहीं रहे। उनको भी पता था कि बच्चा को जब पास ही होना है तो उसे पढ़ाने का क्या मतलब है, बच्चा पास होते जाता है तो माता पिता को भी मतलब नहीं रहता है कि बच्चे को क्या आता है, क्या नहीं आता है। पिछले एक दशक में करोडो रुपए बच्चों की शिक्षा में खर्च हुए लेकिन बच्चों को उसका कोई खास फायदा नहीं हुआ।खासकर गांवों के बच्चों को।
केंद्र में २०१४ में सरकार बदली और मोदी सरकार आई तो आरटीई के तहत फेल न करने की नीति से शिक्षा की गुणवत्ता प्रभावित होने का पता चला।इस नीति पर विचार करने के लिए मोदी सरकार ने २०१५ में एक उपसमिति बनाई।२०१८ में इस पर एक रिपोर्ट आई जिसमें २३ राज्यों से सुझाव लिए गए थे।मात्र पांच राज्यों ने फेल न करने की नीति का समर्थन किया था।आठ राज्यों ने वापस लेने की बात कही थी।छत्तीसगढ़ समेत १२ राज्य फेल न करने की नीति में संशोधन करने के पक्ष में थे।संशोधन २०१९ में लागू हुआ।इसमें राज्यों को शिक्षा नीति में बदलाव का अधिकार दिया गया।राज्यो में हरियाणा,दिल्ली व महाराष्ट्र ने अपनी शिक्षा नीति में संशोधन कर फेल नहीं करने की नीति को बदला। पांचवीं व आठवीं की वार्षिक परीक्षा में पास होना जरूरी किया गया।
छत्तीसगढ़ १८ से नंवबर २३ तक भूपेश बघेल की सरकार थी,उसने शिक्षा नीति में बदलाव करने कोई ध्यान नहीं दिया। उसने अंग्रेजी शिक्षा को बेहतर करने की ओर जरूर ध्यान दिया।बताया जाता है कि साल २०२१ में ही स्कूल शिक्षा विभाग ने आंतरिक सर्वेक्षण करवाया था जिसमें पता चला था कि चौथी कक्षा के बच्चों का ज्ञान पहली के बच्चे जैसा और आठवीं के बच्चे का ज्ञान चौथी कक्षा के बच्चे का है। शिक्षा का बेस कमजोर होने के कारण ही ९वीं से १२ तक का रिजल्ट भी खराब आ रहा है। साय सरकार ने शिक्षा की गुणवत्ता के लिए आरटीई में बदलाव के निर्देश दिए हैं,अब राज्य में आठवीं तक पास करने का नियम बदलेगा, पांचवी व आठवीं की सीजी बोर्ड परीक्षा होगी।
शिक्षा व्यवस्था में जब तक बच्चों व शिक्षकों की मानिटरिंग नहीं होगी, यह पता लगाना मुश्किल होता है कि बच्चे का शिक्षा स्तर क्या है और शिक्षक ने उसके पीछे कितनी मेहनत की है।पहले ऐसा करना आसान नहीं था पर अब तकनीक के चलते ऐसा करना संभव हो सकता है।अब छत्तीसगढ़ के हर बच्चे पर नजर रखने के लिए व्यवस्था की जा रही है।राजधानी रायपुर में विद्या समीक्षा केंद्र स्थापित किया गया है।स्कूली शिक्षा की गुणवत्ता को इससे बेहतर बनाया जा सकता है।एप के जरिए शिक्षा की बेहतरी के लिए बनाई गई योजनाओं की मानिटरिंग हो सकेगी। एक एक बच्चें के प्रदर्शन पर नजर रखना संभव होगा। विद्यार्थियों के अकादमिक आकलन एआई की मदद से किया जा सकेगा। इससे जहां सुधार की जरूरत है,जैसे सुधार की जरूरत है वैसा किया जा सकेगा।अब सीएम साय के समय मेें राज्य में बच्चों को शिक्षा का अधिकार तो होगा ही लेकिन इस बात का खास ख्याल रखा जाएगा कि इससे फायदा हो कोई नुकसान न हो। एक सरकार की यही तो जिम्मेदारी होती है कि जनता को जो अधिकार मिले हैं, उसका उसे पूरा फायदा मिले।