सामान्य ज्ञान

रोजगार सृजन का बड़ा माध्यम है पर्यटन

विश्व पर्यटन दिवस 27 सितंबर

आज से 54 वर्ष पूर्व " यूनाइटेड नेशंस वर्ल्ड टूर ऑर्गेनाइजेशन " ने  पर्यटन कानून को स्वीकार किया था । इसकी शुरुआत संयुक्त राष्ट्र पर्यटन संगठन ने 1980 में की थी । विश्व पर्यटन दिवस की तारीख 27 सितंबर इसलिए तय की गई , क्योंकि इसी दिन इसे 1970 में कानूनी रूप दिया गया था । प्रतिवर्ष संयुक्त राष्ट्र द्वारा इसकी एक थीम तैयार की जाती है , जो ज्यादातर पर्यावरण से संबंधित होती है । पहले विश्व पर्यटन दिवस को " सांस्कृतिक विरासत तथा शांति और आपसी समझ के संरक्षण के लिए पर्यटन का योगदान  " के रूप में रखा गया था । वर्ष 2024 में हम 44 वें विश्व पर्यटन दिवस की पायदान पर खड़े नजर आ रहे हैं । पिछले वर्ष इसे " पर्यटन और हरित निवेश " थीम के साथ मनाया गया था । देखा जाए तो पर्यटन वस्तुतः खुद को आराम देने अर्थात हर प्रकार की चिंता से दूर रखने का प्रयास ही माना जा सकता है । इन दिनों पर्यटन पर निकला व्यक्ति अथवा परिवार अपनी दिनचर्या के विपरीत कुछ भी नियमित , नियंत्रित अथवा बंधा - बंधाया कार्य नहीं करता है । पर्यटन के दौरान व्यक्ति की दृष्टि और समझ का मुख्य स्थान होता है । इसी के आधार पर वह अपने समय और पर्यटन स्थल को आनंदमय बनाने में समय व्यतीत करता है । जैसे पहाड़ों पर रहने वाले लोगों के लिए मरुभूमि में ऊंट की सवारी अदभुत आनंद का पर्याय बन सकती है । इसी तरह समतल जगहों पर रहने वाले पहाड़ों पर जिस आनंद का अनुभव करते हैं वह अप्रतिम कहा जा सकता है । पर्यटन का महत्व इस कदर बढ़ चुका है कि अब भारतवर्ष सहित विश्व के समुद्र तटों पर भीड़ को देखते हुए कहा जा सकता है की समुद्र तट छोटे पड़ने लगे हैं ! 

पर्यटन का मानवीय जीवन में महत्व न तो पहले कम था और न ही आज कम है । यह एक ऐसी गतिविधि है जो मनुष्य को कुछ नया सीखने , मानवता को समृद्ध बनाने और जीवन के साथ समाज के लक्ष्य को ढूढने में सहायक होती है । बदलते सामाजिक मूल्यों के परिप्रेक्ष्य में पर्यटन के स्वरूप और प्रकार में बदलाव आया है । आधुनिक समाज में मनुष्यता का स्थान धन - दौलत ने ले लिया है ! अधिकार , संपदा , धन ,अहम और उपभोग का महत्व आज समुदाय , सहिष्णुता , नम्रता , संवेदनशीलता और दयालुता से कहीं अधिक हो गया है ! परिणाम स्वरूप विश्व के सभी हिस्सों में अर्थव्यवस्था का स्वरूप बदला हुआ दिखाई पड़ रहा है ! देखा जाए तो पर्यटन विभिन्न भाषाओं , संस्कृतियों , लोक - साहित्य , इतिहास एवं घटनाओं के विषय में जानकारी एकत्र करने का सबसे अच्छा साधन है । आर्थिक दृष्टिकोण से विचार किया जाए तो पर्यटन किसी भी देश की रीढ़ की हड्डी होती है , जो अर्थव्यवस्था को जीवित रखने में बड़ा योगदान करती है । साथ ही लाखों - करोड़ों लोगों को जीवन यापन के क्षेत्र में रोजगार के साधन भी मुहैया कराती है । हमें यह भी स्वीकार करना होगा कि पर्यटन जहां मानवीय जीवन में विकास के विभिन्न मार्गों को खोलता है , वहीं इसके कुछ नुकसान भी मानवीय जीवन को प्रभावित करते हैं । उदाहरण के रूप में यदि पर्यटन की सुविधा न होती तो चीन के बुहान शहर से शुरू हुई कोरोना महामारी बुहान से शुरू होकर वहीं दम तोड़ देती ।

 

हमारा भारतवर्ष एक धार्मिक देश कहा जा सकता है । यही कारण है कि यहां पर्यटन नहीं तीर्थाटन शब्द ज्यादा चलन में है । हमारा देश अलग - अलग सभ्यता - संस्कृति के चलते धनी देश भी माना जाता है । हर कदम हमारे देश में भाषाएं , बोलियां , रीति - रिवाज में अंतर आ जाता है । बावजूद इसके भारतवासी आपस में मिल - जुलकर रहते हैं । भारतवर्ष में चारों दिशाओं अथवा हर राज्य में तीर्थ स्थलों की भरमार है । देश - विदेश के हर कोने से पर्यटकों का यहां आना - जाना लगा रहता है । प्रत्येक पर्यटन अर्थात तीर्थ स्थल अपने आप में अनोखेपन के चलते अलग वातावरण , मौसम एवं प्राकृतिक सुंदरता से परिपूर्ण है ! इसी के कारण लोगो में आपसी सौहाद्र की भावना बनी रहती है । लोग एक - दूसरे प्रदेश के रहवासियों को समझ पाते हैं । उनकी संस्कृति का दर्शन कर पाते हैं । हमारे देश की सरकार ने " देखो अपना देश " योजना की शुरुआत पर्यटन को बढ़ावा देने के उद्देश्य से ही की है । इस योजना में सभी तरह के पर्यटन स्थलों को प्रमुखता प्रदान की गई है । कोई ऐतिहासिक स्मारकों के प्रति रुचि रखते हुए वहां की यात्रा करता है , तो कोई प्रकृति प्रेमी मनोरम दृश्यों से आलिंगन करने वहां पहुंच जाता है । वास्तव में " देखो अपना देश " सांस्कृतिक , ऐतिहासिक , धार्मिक , भौगोलिक तथा प्राकृतिक विविधता को जानने - समझने के लिए तैयार की गई योजना है ।

 

हम इस तथ्य को नजर अंदाज नहीं कर सकते हैं कि पर्यटन एक उद्योग है , जो रोजगार का सृजक माना जा सकता है । यह रोजगार के खुले अवसर उपलब्ध कराता । चाहे वह रिक्शा चालक के रूप में हो या होटल व्यवसाई के रूप में । छोटे - बड़े होटल - ढाबे और दुकानें अपने आप पर्यटन उद्योग की सहगामी बनती देखी जा सकती हैं । एक स्थान से दूसरे स्थान की यात्रा भी रोजगार का सृजन करती है । हम सीधे शब्दों में कह सकते हैं की अर्थव्यवस्था को मजबूती देने में पर्यटन उद्योग अपनी भूमिका का बखूबी निर्वहन करता आ रहा है। इसे दृष्टिगत कर हमारे देश की सरकार ने भारतीय पर्यटन को और सम्मुनत बनाने सबसे पहले देश में स्वच्छता अभियान की मशाल को प्रज्वलित किया । इसके बाद गुजरात राज्य में  सरदार वल्लभभाई पटेल की ऐतहासिक मूर्ति की स्थापना की । अब इसे देखने लोग विदेशो से दौड़े चले आ रहे हैं । अभी रामलाल की नगरी अयोध्या में धार्मिक स्थल का प्रारंभिक आकर्षण ही सामने आया है और सरकार को करोड़ों अरबों का राजस्व मिलने लगा है । 

 

 

हमारे देश के पर्यटनस्थल इतने भव्य और नयनाभिराम हैं जो एक बार आए पर्यटक को इस बात के लिए विवश कर देते हैं कि वे इसका बखान अपने देश में कर पर्यटकों का उत्साह बढ़ाते देखे जा सकते हैं । परिणाम स्वरूप नए पर्यटकों का निरंतर आना - जाना बना हुआ है । मैं कह सकता हूं कि पर्यटन की अपनी छबि के लिए ही हमारा देश " सुजलाम.. सुफलाम ... मलयजशीतलाम .." से परिपूर्ण है । जम्मू - कश्मीर से लेकर कुल्लू - मनाली और असम की वादियों का तो कहना ही क्या ? इतना ही नहीं हमारे देश की सांस्कृतिक समृद्धि और गौरवशाली इतिहास पर्यटकों की आंखों में कई वर्षों तक नृत्य करता रहता है । हमारे देश के ऐतिहासिक और प्राचीन स्थलों पर की गई नक्काशी विशेष आकर्षण का केंद्र रहे हैं । हमारे देश का सुंदर वन क्षेत्र विभिन्न प्रकार के जीवों और वनस्पतियों से आच्छादित होने के कारण पर्यटकों से अछूता नहीं रह पा रहा है । भारतवर्ष में पर्यटन की अपार संभावनाएं हैं । अब जरूरत है इन्हें और ज्यादा सुविधाओं से जोड़ने की । 

 

 

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