वन्य जीवों के प्राकृतिक आवास को संरक्षित करने की जरूरत
हम सभी घरेलू और पालतू पशुओं का ध्यान रखते हैं। वहीं वनों में रहने वाले पशुओं को कई तरह की समस्याओं का सामना करना पड़ता है। यह दुर्भाग्यपूर्ण ही है कि इस प्रगतिशील दौर में भी विभिन्न वन्य जीवों पर खतरा मंडरा रहा है। बाघ, हाथी, गैंडा, शेर, तेंदुआ और हिरण के विभिन्न अंगों को प्राप्त करने के लिए इन जीवों का शिकार जारी है। बाघों के शिकार को लेकर लगातार समाचार आते रहते हैं।कुछ समय पूर्व केरल में गर्भवती हथिनी की हत्या ने वन्य जीवों के प्रति हमारी बर्बर मानसिकता को उजागर किया था। भारत में पिछले कई वर्षों में सैकड़ों हाथी करंट से मारे जा चुके हैं। हमारे देश में नर हाथी के दांत काफी महंगे बिकते हैं। पहले गिर अभयारण्य में शेरों की मौत के मामले में भी व्यवस्था की लापरवाही सामने आयी थी। गैंडों का उनके सींग के लिए अवैध शिकार भी चिंता का विषय है। असम के काजीरंगा नेशनल पार्क में एक सींग वाले दुर्लभ गैंडे के शिकार की अनेक घटनाएं प्रकाश में आ चुकी हैं।
वैज्ञानिकों के अनुसार, अंडमान-निकोबार में सुनामी जैसी आपदाएं, मध्य प्रदेश एवं छत्तीसगढ़ में बांधों का निर्माण, उत्तर भारत में खेती की जमीन में वृद्धि तथा वृक्षों का व्यावसायिक इस्तेमाल होने से हमारे देश में तेजी से जंगलों का क्षरण हो रहा है।
दरअसल, जब वन्य जीवों का प्राकृतिक वास, यानी जंगल नष्ट होने लगता है तो वे अपने प्राकृतिक वास से बाहर निकल आते हैं और आस-पास के खेतों एवं गांवों में घरेलू पशुओं और लोगों पर हमला बोलते हैं। इस तरह की घटनाओं से वन्य जीवों के विरुद्ध गांव वालों का गुस्सा भी बढ़ता है जो वन्य जीवों की हत्या के रूप में सामने आता है। यह मानव-वन्य जीव संघर्ष हमारे पारिस्थितिक तंत्र पर गहरा प्रभाव डालता है। इसके अतिरिक्त, वन्य जीवों के विभिन्न अंग और खाल प्राप्त करने के लिए भी तस्कर इनकी हत्याएं करते हैं। कई बार वन्य जीवों के खिलाफ होने वाले षडयंत्र में वन विभाग के कर्मचारियों की मिलीभगत भी होती है। गौरतलब है कि संरक्षित वन्य क्षेत्रों में अनेक तरह की समस्याएं और विसंगतियां मौजूद हैं। कुछ वन्य क्षेत्रों में दो तरह के समुदायों का दखल है। एक वे, जिनके पास दूसरे पशु हैं और वे उन्हें संरक्षित क्षेत्र में चराते हैं। दूसरे वे गांव वाले हैं, जो इन इलाकों के संरक्षित क्षेत्र घोषित होने के पहले से यहां रह रहे हैं। इस तरह अनेक लोग एवं घरेलू पशु संरक्षित वन्य क्षेत्रों के प्राकृतिक स्वरूप में व्यवधान उत्पन्न कर रहे हैं। कुछ संरक्षित वन्य क्षेत्रों से मुख्य सड़क एवं रेल लाइन भी गुजर रही हैं। इस कारण भी वन्य जीवों के प्राकृतिक वास में व्यवधान उत्पन्न होता है। कुछ संरक्षित वन्य क्षेत्रों के आसपास मंदिर भी स्थापित हैं, जहां हर साल बड़ी संख्या में श्रद्धालु आते हैं, जो अभयारण्य में कूड़ा-कचरा भी फैलाते हैं और यहां से ईंधन की लकड़ी भी ले जाते हैं। इन सब गतिविधियों के कारण संरक्षित क्षेत्रों का प्राकृतिक स्वरूप तेजी से नष्ट हो रहा है। यही कारण है कि वन्य जीव मनुष्यों के विरुद्ध लगातार उग्र हो रहे हैं।
यह दुर्भाग्यपूर्ण है कि हम अभी तक प्रकृति के साथ जीने का सलीका नहीं सीख पाये हैं। वन्य जीवों के प्राकृतिक वास को सुरक्षित और संरक्षित करने के लिए भी हम गंभीर नहीं हैं। दरअसल, वन्य जीवों की सुरक्षा हमारी प्राथमिकता में नहीं है। हालांकि कुछ समय पहले केंद्रीय मंत्रिमंडल ने दक्षिण एशिया वन्यजीव प्रवर्तन नेटवर्क (एसएडब्ल्यूईएन) व्यवस्था अपनाने के लिए अपनी सहमति दी थी। इस प्रक्रिया से दूसरे देशों से संचालित होने वाले वन्य जीव अपराधों पर काफी हद तक लगाम लग सकेगी। एसएडब्ल्यूईएन नेटवर्क में दक्षिण एशिया में आठ देश शामिल हैं। इन देशों में अफगानिस्तान, बांग्लादेश, भूटान, भारत, मालदीव, नेपाल, पाकिस्तान और श्रीलंका हैं। इस नेटवर्क के माध्यम से वन्य जीव संरक्षण की दिशा में महत्वपूर्ण कार्य होने की उम्मीद है। हमें समझना होगा कि जब हम वन्य जीवों का संरक्षण करते हैं, तो उनके साथ-साथ दूसरे वन्य जीवों और पूरे पारिस्थितिक तंत्र का भी संरक्षण करते हैं।
वन्य जीवन को बचाने की इच्छा शक्ति न ही हमारे राजनेताओं में दिखाई देती है, न आम जनता में।वन्य जीवों को बचाने की किसी भी योजना में उस आदिवासी समाज का भी जिक्र कहीं नहीं होता जो मुख्य रूप से वनों पर ही निर्भर है। हालांकि वन्य जीवों को बचाने के लिए उन्हें वनों से बाहर पुनर्स्थापित करने की बात हमेशा कही जाती है। अब हमें ऐसी योजना विकसित करनी होगी जिसमें वनों पर निर्भर आदिवासी समाज एवं वन्य जीव दोनों के बारे में सोचा जाए. इससे आदिवासी समाज वन्य जीवों को बचाने के लिए स्वयं आगे आयेगा। आज जरूरत इस बात की है कि हम विभिन्न वन्य जीवों को बचाने के लिए तर्कसंगत तथा गंभीर नीतियां बनाएं, नहीं तो वन्य जीवन पर मंडराता खतरा हमारे अस्तित्व के संकट का भी कारण बन जायेगा।