रोचक तथ्य

लोकसभा स्पीकर और राज्यसभा सभापति से सीधे क्यों भिड़ने लग गया है विपक्ष?

वर्तमान लोकसभा में एक बात यह अच्छी नजर आ रही है कि सरकार के साथ-साथ विपक्ष भी खूब सक्रिय नजर आ रहा है। पिछली दो लोकसभा में चूंकि औपचारिक रूप से कोई नेता प्रतिपक्ष ही नहीं था इसलिए विपक्ष प्रभावी भूमिका में नहीं दिख रहा था।

संसद का मॉनसून सत्र इस बात के लिए खासतौर पर याद किया जायेगा कि इस दौरान कई बार ऐसा देखने को मिला कि लोकसभा में स्पीकर ओम बिरला और राज्यसभा में सभापति जगदीप धनखड़ से विपक्षी सदस्यों ने जानबूझकर उलझने का प्रयास किया। दोनों सदनों के सभापतियों पर विपक्ष ने तमाम तरह के आक्षेप लगाने के लिए कई तरह के हथकंडे अपनाये। संभवतः ऐसा इसलिए किया गया ताकि आसन की निष्पक्षता को संदेह के कठघरे में खड़ा किया जा सके। खास बात यह है कि विपक्षी सदस्यों ने सदन की सदस्यता की शपथ लेते समय संविधान की प्रति हाथ में ले रखी थी लेकिन उसी संविधान के नियमों से बनी सदन के संचालन की नियम पुस्तिका में लिखे निर्देशों का पालन करने में वह कोताही बरतते हैं। ताजा मामला समाजवादी पार्टी की सांसद जया बच्चन का है जिन्होंने राज्यसभा के सभापति जगदीप धनखड़ को नाहक ही विवाद में घसीटा कर गलत परम्परा कायम की। इस बार के सत्र के दौरान दोनों सदनों की कार्यवाही पर गौर करेंगे तो ऐसा लगेगा कि सरकार को छोड़ कर विपक्ष अब लोकसभा स्पीकर और राज्यसभा सभापति से सीधे भिड़ते रहने की रणनीति पर चल रहा है।

इसके अलावा, इस बार यह भी देखने को मिला कि विभिन्न विधेयकों पर चर्चा के दौरान एक दूसरे पर हमला कर रहे पक्ष-विपक्ष के नेता मूल मुद्दों और समस्याओं पर ध्यान केंद्रित नहीं कर रहे थे। नेताओं के संबोधनों में सुर्खियों में आने लायक और उनके भाषणों को वायरल बनाने लायक सामग्री तो थी लेकिन देश की वर्तमान समस्याओं का हल सुझाने या भविष्य की जरूरतों को पूरा करने वाले सुझावों का नितांत अभाव था। देखा जाये तो संसद की कार्यवाही के संचालन पर देश का करोड़ों रुपया खर्च होता है इसलिए सांसदों को चाहिए कि वह सिर्फ अपने राजनीतिक प्रभुत्व को बढ़ाने पर ध्यान देने की बजाय जनहित के मुद्दों को उठाने और जनता की समस्याओं का हल निकलवाने को प्राथमिकता दें।

हालांकि वर्तमान लोकसभा में एक बात यह अच्छी नजर आ रही है कि सरकार के साथ-साथ विपक्ष भी खूब सक्रिय नजर आ रहा है। पिछली दो लोकसभा में चूंकि औपचारिक रूप से कोई नेता प्रतिपक्ष ही नहीं था इसलिए विपक्ष प्रभावी भूमिका में नहीं दिख रहा था। उस समय संसद में बिना बहस के ही कई अहम विधेयक पारित हो जा रहे थे। लेकिन अब लोकसभा में विपक्ष का नेता बनने के बाद से राहुल गांधी जिस तरह जनहित के मुद्दों को प्रभावी ढंग से उठा रहे हैं उससे सरकार अपने मन मुताबिक काम नहीं कर पा रही है। वैसे यह अच्छी बात है कि अब जिन विधेयकों पर आम राय नहीं बन रही है उन्हें संयुक्त संसदीय समिति को भेजा जा रहा है। गौरतलब है कि पिछली लोकसभा में ऐसा देखने को नहीं मिलता था।


 
 


 
 

 

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