मनोरंजन

वास्तविक और दिलचस्प कहानियों को अपनाने से हिन्दी मनोरंजन के क्षेत्र में बढ़ रही है बायोग्राफी और असल जिन्दगी से प्रेरित कहानियों की लोकप्रियता!

हिन्दी मनोरंजन के क्षेत्र में बदलाव साफ तौर पर दिख रहा है। अब ज्यादा से ज्यादा स्टोरीटेलर्स असल जिन्दगी की कहानियों और आदर्श व्यक्तित्वों से प्रेरित हो रहे हैं। यह प्रचलन हिन्दी सिनेमा, टेलीविजन और ओटीटी प्लेटफॉर्म्स पर अमूमन काफी देखने को मिल रहा है। यह एक अंदाज बन चुका है, जो दर्शकों को पसंद है और कहानियों में जान डाल देता है। उदाहरण के लिए, भारतीय सिनेमा में हाल में रिलीज हुई '12वीं फेल' और 'मैं अटल हूँ' और हमारे स्वर्गीय प्रधानमंत्री श्री अटल बिहारी वाजपेयी के बचपन की अनकही कहानियों पर आधारित, एण्डटीवी की नई पेशकश 'अटल' से इस परिदृश्य में आ रहे बदलाव में योगदान मिल रहा है। इस प्रकार कहानी कहने की कला में यथार्थवाद आ रहा है। 
 
बड़े पर्दे पर ऐसी कई कहानियाँ हैं, जो असाधारण लोगों की जीत और संघर्ष को दिखाती हैं। 'दंगल' जैसी फिल्में महावीर सिंह फोगाट की कुश्ती में विरासत का वर्णन करती हैं, जबकि 'भाग मिल्खा भाग' में एथलीट मिल्खा सिंह का प्रेरणादायक सफर दिखाया गया है। 'एमएस धोनीः द अनटोल्ड स्टोरी' क्रिकेट जगत की इस महान हस्ती की जिन्दगी के अनकहे अध्याय सामने रखती है और 'शकुंतला देवी' अपनी शानदार स्टोरीटेलिंग से गणित की महान विशेषज्ञ को सम्मान देती है। टेलीविजन की बात करें, तो वह भी ऐतिहासिक कहानियों और बायोग्राफिकल सीरीज का कैनवास बन गया है। 'चक्रवर्ती अशोक सम्राट' में सम्राट अशोक का जीवन दिखाया गया है। इसी तरह, 'महाराणा प्रताप' में राजपूत योद्धा की बहादुरी नजर आती है और एण्डटीवी का 'एक महानायक- डाॅ. बी. आर. आम्बेडकर' और हालिया शो 'अटल' प्रमुख राजनेताओं क्रमशः डाॅ. बी. आर. आम्बेडकर और श्री अटल बिहारी वाजपेयी के बचपन की अनकही कहानियाँ प्रस्तुत करते हैं।  
 
ओटीटी प्लेटफॉर्म्स पर भी इस तरह की कई कहानियाँ देखने को मिल रही हैं। ज़ी5 का 'ब्रेकपाॅइंट' टेनिस सितारों महेश भूपति और लिएंडर पेस की जिन्दगी और सफर पर आधारित है, जबकि 'स्कैम 1992ः द हर्षद मेहता स्टोरी' में आर्थिक गड़बड़ियों का खुलासा होता है। इधर 'एम.एस. धोनीः द अनटोल्ड स्टोरी' में क्रिकेट के इस धुरंधर की अनकही बातें हैं, जबकि 'गुंजन सक्सेनाः द कारगिल गर्ल' जेंडर नॉर्म्स को चुनौती देती है। ये सभी विविधतापूर्ण कहानियाँ कहने का उदाहरण हैं। हिन्दी मनोरंजन में असल जिन्दगी की कहानियों की प्रामाणिकता के होने से उसमें गहराई, प्रासंगिकता और दर्शकों के साथ असली जुड़ाव आता है।
 
अब यह देखना और सोचना बेहद जरूरी होगा कि प्रेरक जीवनियों का यह अंदाज आगे कैसे अपना जलवा बरकरार रख पाएगा। क्या दर्शकों को इन असली कहानियों में खुशी और प्रेरणा मिलती रहेगी? इंडस्ट्री अनियत क्षेत्रों में काम कर रही है, इसलिए भविष्य में कहानी कहने की असली कला की ताकत के जरिए खोज एवं जुड़ाव की एक रोमांचक यात्रा देखी जा सकती है।

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