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हिंदी सिने जगत में अपनी दमदार पहचान बनाने वालीं इस अभिनेत्री ने लोगों के घर नौकरानी का काम भी किया था


नई दिल्ली: हिंदी सिनेमा की एक मशहूर और दमदार एक्ट्रेस, उन्होंने एक खतरनाक वैम्प से मजबूत पहचान बनाई और एक प्यारी सी दादी का रूप लेकर सुनहरे पर्दे को अलविदा कहा. उन्होंने अपने दौर के सभी बड़े एक्ट्रेस और डायरेक्टर्स के साथ काम किया और नारी के अनेक रूपों को सजीव किया. कभी नकचड़ी और घमंडी लड़की तो कभी एक खूंखार सास. लेकिन क्या आप जानते हैं कि इस अदाकारा ने अब अपने करियर की शुरुआत एक नर्म और नाजुक हीरोइन के तौर पर की थी. 60, 70 और 80 के दशक की एक ऐसी अभिनेत्री जो ना सिर्फ अपने आप दमदार एक्टिंग और खूबसूरती की वजह से जानी जाती थी बल्कि लोगों के मन में उन्हें लेकर भी खौफ पैदा हो जाता था.

क्या सोच सकते हैं इस अभिनेत्री ने जन्म तो सोने के पालने में लिया था, लेकिन एक वक्त ऐसा भी आया जब उन्हें हफ्तों तक भूखे रहना पड़ा और दर-दर की ठोकरें खाने पड़ी थी. हिंदी सिने जगत में अपनी दमदार पहचान बनाने वालीं इस अभिनेत्री ने लोगों के नौकरानी का काम भी किया था. कौन थी ये अदाकारा और क्या था उनकी इस उतार-चढ़ाव भरी जिंदगी का राज. चलिए आपको बताते हैं…

बेहद रईसी में गुजरा बचपन लेकिन फिर…

‘दादी मां दादी मां प्यारी-प्यारी दादी मां’ वाली दादी याद हैं आपको, जी हां बात कर रहे हैं दमदार एक्ट्रेस शशिकला की. क्या आप जानते हैं कि इस मुकाम तक पहुंचने से पहले उन्हें किस किन-किन मोड़ से होकर गुजरना पड़ा. शशिकला की जिंदगी काफी उतार-चढ़ाव भरी रही. शशि कला के पिता एक बड़े बिजनेसमैन थे और यही वजह थी उनका बचपन बेहद रईसी में गुजरा. वह 6 भाई-बहन थे. बचपन से ही उन्हें सिंगिंग, डांसिंग और एक्टिंग का शौक था. वह कई स्टेज शो में हिस्सा भी लेती रहती थीं, लेकिन एक वक्त ऐसा आया जब उनके पिता का बिजनेस पूरी तरह से बर्बाद हो गया और वह कंगाल हो गए.

जब घरों में करना पड़ा था नौकरानी का काम

पिता का बिजनेस डूबा तो ऐसे में पूरा परिवार अचानक से सड़क पर आ गया और बुरा हालात के शिकार हो गए. इन हालातों में पूरा परिवार मुंबई शिफ्ट हो गया. शशि कला की उम्र तब करीब 10-11 साल रही होगी. खबरों की मानें तो शशि कला के पिता इन्हें लेकर फिल्म स्टूडियो के चक्कर काटने लगे थे कि शायद बेटी को कुछ काम मिल जाए लेकिन उन्हें कामयाबी नहीं मिल रही थी. मीडिया मीडिया रिपोर्ट्स की मानें तो उन दिनों शशि कला को परिवार का गुजारा करने के लिए लोगों के घरों में झाड़ू-पोछा और बर्तन तक धोने पड़े थे.

मेला मंडली से हुई शुरुआत

एक पुराने इंटरव्यू में भी उन्होंने अपने इन कठिन दिनों के बारे में बात की थी और बताया था कैसे बिना खाए उन्होंने दिन भी गुजारे हैं. उन्होंने बताया था इन परिस्थितियों में एक दिन वह एक मेला मंडली सदस्य बन गईं. उन्होंने सोलापुर सहित कई जगह परफॉर्म भी किया. यहां वह पौराणिक कथाओं, नाटक और गीतों पर प्रस्तुति दिया करती थीं. इस तरह से परफॉर्मेंस के लिए उन्हें अवार्ड और कुछ पैसे भी मिले, जिससे घर में कुछ खाने-पीने का इंतजाम हो गया.

कैसे खुले बॉलीवुड के रास्ते?

बताया जाता है कि उसी दौरान जानी-मानी अभिनेत्री नूरजहां की नजर 1 दिन शशिकला पर पड़ गई. उन्हें यह मासूम लड़की पसंद आई, जिसे उन्होंने अपनी फिल्म में काम देना चाहा. लेकिन तब शशिकला की उर्दू कमजोर होने के कारण उन्हें उस फिल्म में काम नहीं मिल सका. लेकिन बाद में नूरजहां के पति शौकत अली की फिल्म ‘जीनत’ के एक कव्वाली सीन में शशिकला को काम मिल गया, जिसके बाद शशिकला के लिए हिंदी सिनेमा के दरवाजे खुल गए.

शशिकला के जीवन में जब शुरू हुई उथल-पुथल

सब कुछ ठीक चल रहा था, धीरे-धीरे फिल्म इंडस्ट्री में आने का मिलना भी शुरू हो गया था. अब लगभग ₹400 की पगार पर उन्हें काम मिल रहा था, हालात पहले से थोड़े ठीक हो रहे थे. लेकिन फिर कुछ ऐसा हुआ, जिसकी वजह से शशिकला के जीवन में फिर उथल-पुथल शुरू हो गई. दरअसल, 1947 में जब देश आजाद हुआ तो नूरजहां और उनके पति पाकिस्तान चले गए. उसके बाद शशिकला के लिए फिर से वही बेरोजगारी और संघर्ष की जिंदगी वापस लौट गई.

फिर खाई थी दर-दर की ठोकरें

बताते हैं तब शशिकला एक बार फिर काम की तलाश में दर-दर की ठोकरें खाने लगी और निर्माता-निर्देशक के ऑफिस के चक्कर काटने लगे, लेकिन उन्होंने हौसला नहीं हारा छोटे-मोटे काम मिलने लगे. करीब एक दशक तक फिल्मों के छोटे-मोटे हिस्सों में नजर आने लगी और बाद में 1953 में वी. शांताराम की ‘तीन बत्ती चार रास्ता’ और फिल्म ‘डाकू’ में अभिनय करने का उन्हें मौका मिला. उनके करियर को मुकाम तब मिला, जब 1959 में आई विमल राय की फिल्म ‘सुजाता’ में वह नजर आए, जो जातिवाद के मुद्दे पर बनाई गई. हिंदी सिनेमा की ये पहली फिल्म थी. फिल्म में उन्होंने एक ब्राह्मण परिवार की बेटी का किरदार निभाया, जिसे काफी सराहा गया था.

‘छोटे सरकार’ के लिए बड़ी तारीफें

इसके बाद वह ताराचंद बड़जात्या की फिल्म ‘आरती’ में दिखाई दीं, जो 1962 में आई थी. इसमें मुख्य भूमिका में मीना कुमारी और प्रदीप कुमार थे. यह फिल्म शशिकला के लिए एक बड़ा कदम साबित हुई थी, क्योंकि वह फिल्म निर्माताओं के लिए नकारात्मक चित्रित करने वालीं को-एक्ट्रेस के रूप में सामने आई थीं. उसके बाद 1974 में ‘छोटे सरकार’ में नजर आईं, जिसके उन्हें खूब तारीफें भी मिली थी.

‘आरती’ और ‘गुमराह’ साबित हुई ट्रेनिंग पॉइंट

फिल्म ‘आरती’ और ‘गुमराह’ के लिए उन्हें फिल्मफेयर के बेस्ट सपोर्टिंग एक्ट्रेस के अवार्ड से नवाजा गया था. ये फिल्में उनके कैरियर की ट्रेनिंग पॉइंट साबित हुई और उसके बाद से उन्हें इसी तरह के किरदार मिलने लगे, जिसमें वह सपोर्टिंग एक्ट्रेस और वैम्प के तौर पर नजर आने लगीं और यही उनकी पहचान बनकर सामने आई. उन्होंने ‘अनुपमा’, ‘फूल और पत्थर’, ‘आई मिलन की बेला’, ‘गुमराह’, ‘वक्त’ और ‘खूबसूरत’ जैसी फिल्में की, जिन्हें समीक्षकों द्वारा खूब सराहा गया.

19 साल की उम्र में की थी शादी

फिल्मों में कामयाबी मिली रही थी की महज 19 साल की उम्र में शशिकला ने ओम प्रकाश सहगल से शादी कर ली. बताया जाता है कि दोनों का कुछ वक्त काफी अच्छा गुजरा. इस दौरान शशिकला ने दो बेटियों को भी जन्म दिया, लेकिन कुछ ही साल बाद पति का बिजनेस फेल होने लगा और शशिकला के कंधे पर अकेले घर चलाने की जिम्मेदारी आ गई. पैसे को लेकर दोनों के बीच मत बन मतभेद होने लगे. बताते हैं तब घर की रसोई चलाने के लिए उन्हें डबल शिफ्ट में काम करना पड़ता था और वह बेहद परेशान रहने लगी थी.

कैंसर से हुई मौत

उनके परिवार और पति के बीच लड़ाई झगड़े हुआ करते थे, जिसके बाद उनका परिवार टूट गया. इसके बाद एक्ट्रेस कैंसर की चपेट में आ गईं, जिस कारण 4 अप्रैल, 2021 को एक्ट्रेस की मौत हो गई.

 





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