दुर्गा माई का दर्द ऐसे हरें
नवरात्रि का पावन पर्व देशभर में चल रहा है।ऐसे धार्मिक माहौल में डूबा हुआ मैं कल रात भजन कीर्तन सुनकर देर रात को घर लौटा था।गहरी नींद पड़ी नहीं थी अर्थात मैं स्वान निद्रा में सो रहा था। तभी मेरे बगल में सोई हुई मेरी धर्मपत्नी सुधा अचानक जोर जोर से चिल्लाने लगी।
उसकी चिल्लाहट से मेरी अधपकी नींद टूट गई ।मैं घबराकर उठा और लाईट जलाकर उसकी ओर ताकने लगा।मैंने देखा उसके माथे पर पसीने की लकीर उभर आई हैं। वह अपने गले के हार में लगे दुर्गा मां के लॉकेट को मुट्ठी में कस कर पकड़ी हुई बदहवासी की हालत में बैठी है।
वह लगातार बुदबुदा रही थी -मुझे क्षमा करो दुर्गा मां। क्षमा करो। मेरी बलि मत लो। मैं तुम्हारी शरण में हूं मां।दंडवत प्रणाम करती हूं।प्रण करती हूं,अब कभी किसी जीव की बलि हम नहीं देंगे।
मैं झटपट से बिस्तर से उठकर उसकी ओर गया। उसके माथे पर आए पसीने को अपने गमछे से पोछते हुए पूछा-क्या हुआ सुधा?कोई डरावना सपना देख रही थी क्या ?कुछ बलि वलि की बात बुदबुदा रही थी तुम।
मुझे अपने करीब पाकर वह थोड़ा सामान्य हुई।तब मैंने उसे पास में रखे गिलास के पानी को दिया।वह एक सांस में पानी को गटागट पी गई। फिर लंबा सांस छोड़ते हुए बोली- मनु के पापा! मैं सपने में देखी कि अलग-अलग मोहल्ले में बिठाई हुई दुर्गा मां हमारे घर के पीछे मैदान में एकत्रित हुई हैं।वे सभी अपना मान -अपमान दुःख- दर्द बताते हुए भक्तजनों के प्रति भारी आक्रोश व्यक्त रहीं थीं।
अरे बाप रे! कहते हुए मैंने कहा - दुसरों का दुःख हरने वाली दुर्गा माई को भला क्या दुःख डसने लगा।किसकी शामत आई है,जो शक्तिदायिनी से टकरा रहा है।सुधा जरा बताओ तो ,किस किस मोहल्ले की दुर्गा जमा थीं, और क्या क्या बातें वे कर रही थीं सुधा?
सुधा अपनी मुठ्ठी खोलते हुए लाकेट की दुर्गा को नमन करके बोली - मैदान में आईं रामसागर पारा की दुर्गा माई अपने कान दर्द से कराह रहीं थीं।कान में ठूंसी हुई रूई को निकाल कर वे बताईं - घर में अपनी मां को पूछते नहीं ऐसे भगत मेरे मंडप में बैठे रहते हैं।अगड़म बगड़म गीत बजाते,ही ही बक बक करते,दर्शनार्थी महिलाओं को दुशासन की तरह घूरते रहते हैं।
बगुला जैसे तन के उजले और मन के काले ऐसे ढोंगी भक्तों को देख देख कर मेरा पारा सातवें आसमान में चढ़ जाता है।मन करता है त्रिशूल से उनकी आंखें नोच लूं,पर मां का हृदय कहता है कि उन्हें सुधरने का समय दे दूं।उस गंदे माहौल मेरा जीना दूभर हो गया है।
उनका दुःख सुनकर रावनभांठा से आईं मां दुर्गा बोलीं -तुम्हारी तरह मेरी भी बुरी दशा है दीदी। कपटी भक्ति की मार सहते मैं भी बैठी हूं।मेरे समक्ष मैदान में ढम ढम ढायं ढायं की कर्कश आवाज़ में डी जे बजाकर छोकरे और छोकरियां देर रात तक नाचते हैं।एक दुसरे को देखकर आंखें मटकाते हैं।ऐसी ऐसी उटपटांग हरकत करते हैं जिन्हें देखकर मेरी आंखें शर्म से झुक जाती हैं।
एक चिंता जनक बात सुनो।कल मेरे मंडप में आई ऐसी एक भक्तिन से मैं पूछी- अपने श्रीमान जी के साथ दर्शन करने आई हो क्या बेटी ? तब ओ खटाक से बोली - उहूं ...क्या मदर,आप भी आउट डेटेड जमाने की बात कर रही हो। मैं तो अपने बेस्ट ब्वायफ़्रेंड के साथ आई हूं।
ब्वायफ़्रेंड के अर्थ को मैं समझ नहीं पाई।मैंने पूछा- अच्छा,तो क्या तुम्हारा विवाह उसके साथ तय हो गया है?
मेरा सवाल सुनकर ओ भक्तिन "धत पगली। ए तो टाइम पास है" कहते हुए अपने ब्वायफ़्रेंड की फटफटी में उचककर बैठ गई और फिर काला धूंवा उड़ाते हुए छूमंतर हो गई।मेरे मन में विचार आया कि आज के बच्चे अपने माता -पिता की आंखों में इसी तरह धूल झोंक रहे हैं।
हां बहिन ऐसे कपूत तो भस्मासुर से आगे निकल गए हैं।कहते हुए गूड़घानी मोहल्ले से आई मां दुर्गा बोली -पीड़ा के मामले में हम दोनों एक ही नाव पर सवार हैं,पर तुम तो नए जमाने के लड़के- लड़कियों से पीड़ित हो।मेरा सिरदर्द तो बड़ी उम्र की बहु-बेटियों का चाल चलन बन गया है।लगता है ए लोग तो मान मर्यादा को बेचकर खा गए हैं।भड़कीले, बेढंगे,अधनंगे वस्त्रों को धारण करके मंडप में ऐसे आती हैं,जैसे किसी फैशन परेड में आई हों।
ऐसी एक फैशनेबल बहुरानी से मैं बोली- तुम लोगों को देख-देख कर हमारा मन भी बांह कटा ब्लाउज़,फटी जिंस की पेंट-जाकिट पहनने को मचल जाता है। बहुरानी, हमें भी एक बार ऐसा ही कपड़ा पहना दो।हम भी लटके झटके मारते घूम आएगें।
मेरी बातें सुनकर वह बहुरानी पहले तो मुझे घूर घूर कर देखने लगी फिर बोली- लगता है,आप मान मर्यादा भूल गईं हैं।आप तो देवी हैं,भला आपको बेढंगा पहनावा शोभा देगा क्या?
तब काली माई की तरह मैं उस पर बरस पड़ी-तुम भी तो किसी के घर की जीती जागती देवी हो।यहां उल -जुलूल वस्त्र पहनकर आई हो।तो क्या तुम्हारे मुख से मान मर्यादा की बात शोभनीय है? मैं तुम्हारी मां हूं।याद रखना जिस दिन तुम्हारी तरह तुम्हारी बेटी भी गदर मचाएगी तब तुम्हें पछतावा होगा।
अपने खान पान रीति-रिवाज से परे मत जाओ।पश्चिमी सभ्यता का अनुशरण मत करो।याद करो बेटी कि सूरज जब पश्चिम की ओर जाता है वह डूब जाता है।अभी भी वक्त है चेत जाव बहूरानी।समय हाथ से निकल जाने पर हाथ मलते हुए कहना पड़ता है "का वर्षा जब कृषि सुखाने"....।
स्वप्न की इतनी बातें बताने के बाद मेरी श्रीमती जी थोड़ा रूकीं तो लपककर मैंने पूछा -हमारे मोहल्ले की दुर्गा माई भी तो आईं रहीं होंगी? वे क्या बोल रहीं थीं?मेरे इस प्रश्न पर थरथराती जुबान से श्रीमती जी बोली-हमारे मोहल्ले की दुर्गा माता तो आंख से आग बरसाते हुए आईं थीं।वे हमारे घर की ओर इशारा करते कह रहीं थीं, कि ए ठाकुर परिवार के लोग बकरे की बलि देने वाले हैं। बेचारे बकरे सहित उसके बच्चों ने खाना पीना छोड़ दिया है।फिर भी इन लोगों को दया नहीं आ रही है।
सुधा की बात सुनकर मेरा मन व्याकुल हो गया। मैं उसका हाथ पकड़ते हुए पूछ पड़ा- आगे क्या हुआ सुधा?तब मेरे हाथ पर अपना हाथ रखते हुए वह बोली- हमारे मोहल्ले की दुर्गा की बातें सुनकर बब्बर शेर की तरह सभी दुर्गा दहाड़ पड़ीं।वे बोलीं -जीव हत्या घोर पाप है। ए परिवार शायद इसे भूल गया है।चलो,इन्ही के परिवार के किसी सदस्य की बलि लेते हैं,तब इनकी आंख खुलेगी।
इतना कहते कहते सुधा का मुंह फिर सुखने लगा।वह अपने हाथ को मुंह पर रखकर फफक पड़ी।उसे हिम्मत बंधाते हुए मैंने कहा- डरो नहीं सुधा-बताओ तो फिर क्या हुआ?इस पर वह दो घूंट पानी पीकर बोली- हमारी दुर्गा माई के साथ सभी दुर्गा मेरे करीब आ गए और तलवार-त्रिशूल से मेरी गर्दन पर वार करने लगे।जिसकी असहनीय पीड़ा से तिलमिलाते मैं जोर जोर से चिल्लाने लगी।तभी मेरा सपना टूट गया ।
सुधा के सपने का हाल जानकर मैं भी पसीना से तरबतर हो गया।बाहर की ठंढी हवा पाने मैंने खिड़की को खोल दिया।तब मुझे भोर का संदेश देने वाला तारा "सुकुवा" दिखाई दिया।उसकी ओर इशारा करते हुए मैंने कहा- सुधा देखो हमारी जिंदगी में नई सुबह हो गई है।अब हम कभी किसी जीव की बालि नहीं देंगे।पश्चिमी सभ्यता से दूर अपनी संस्कृति को अपनाए हुए घर की मां बहन बेटियों को पूरा सम्मान देंगे।
मेरी बात सुनकर सुधा भी बिस्तर से उठकर खिड़की के करीब आ गई ।वह बाहर कीओर झांकते हुए बुदबुदाई - ओ देखिए,मैदान में जमा सभी दुर्गा माई अब हंसते हुए अपने अपने मंडप के लिए वापस लौट रही हैं। बोलिए दुर्गा माई की जय।
विजय मिश्रा 'अमित'
वरिष्ठ नाट्य निर्देशक
एम 8 सेक्टर 2, अग्रोहा सोसायटी,पो आ-सुंदर नगर रायपुर (छग)492013
मो.9893123310????