छत्तीसगढ़ / बालोद

धू धू कर जल रहे जंगल, रेंजर को खबर नहीं

बालोद। जिले के दल्ली राजहरा के जंगलों में भीषण आग लग गई है। आग ने आसपास स्थित कृषि फार्मों को भी अपनी जद में ले लिया है। बोइरडीह डेम रोड पर स्थित माथुर कृषि फार्म में रखे लाखों रुपयों के कृषि उपकरण जलकर खाक हो गए हैं। दल्ली राजहरा के आसपास स्थित जंगलों में हर साल पतझड़ के मौसम में शरारती तत्वों व लकड़ी चोरों द्वारा आग लगा दी जाती है। आग से जंगल के पेड़ों और छोटे जीव जंतुओं को काफी क्षति पहुंचती है। जंगलों में आग लगाने से सूखे पत्तों में आग तेजी से पकड़ लेती है और आसपास के पूरे जंगलों को अपनी चपेट में ले लेती है। 

 
जिससे पिछली बरसात के समय नए उगे छोटे छोटे पौधे जल जाते है और जंगलों की नई पौध नष्ट हो जाती है। साथ ही जंगलों की जमीन में बिल बनाकर रहने वाले कीड़े मकोड़े जलकर मर जाते हैं। साथ ही जमीन के अंदर बिलों में रहने वाले नेवले, सांप, गोह, खरगोश, चूहे, सियार आदि जीव बिलों में धुआं भर जाने से दम घुटने पर मर जाते हैं। कुछ नासमझ व गैरजिम्मेदार लोगों की यह करतूत पर्यावरण और वन्यजीवों पर बहुत भारी पड़ती है। जंगलों में आगजनी घटना कई वर्षो से सतत होती आ रही है पर वन विभाग द्वारा इसके बचाव के लिए कोई उपाय या प्रयास नही किया जाता है। 
 
जीवों के संरक्षक और पर्यावरण प्रेमी जगेंद्र भारद्वाज ने जंगलों और जीवों को पहुंचाई जा रही क्षति पर क्षोभ व्यक्त करते हुए वन विभाग की बेपरवाही पर चिंता जताई है। उल्लेखनीय है कि बीते कुछ दिनों से दल्ली राजहरा के बोइरडीह डेम के आसपास स्थित जंगल में भीषण आग लगी हुई है। इस आग ने आसपास स्थित कृषि फार्मों को भी तेजी से चपेट में लेना शुरू कर दिया है। बोइरडीह डेम रोड पर स्थित माथुर कृषि फार्म हाउस भी आग की जद में आ गया। आग से माथुर फार्म हाउस में रखे लाखों रुपयों के कृषि उपकरण जलकर नष्ट हो गए हैं।
 
वन विभाग द्वारा जंगलों की सुरक्षा के लिए हर साल करोड़ों रुपए खर्च करती है। जंगलों को आग से बचाने के लिए मैदानी अमले को अलग से फंड उपलब्ध कराया जाता है।व न विभाग के मैदानी अमले में एक पद होता है फायर वॉचर का। वस्तुतः फायर वॉचर का काम जंगलों में लगने वाली आग और आग लगाने वाले तत्वों नजर रखने का होता है। एक वन परिक्षेत्र में पचास से अधिक फायर वाचर नियुक्त रहते हैं, जिनकी तनख्वाह पर शासन द्वारा लाखों रुपए खर्च किए जाते है। इसके अलावा चौकीदार, बीट गार्ड, फारेस्ट गार्ड, वनपाल और डिप्टी रेंजर भी तैनात होते हैं। 
 
इन सबके ऊपर एक अधिकारी होता है रेंजर। मगर लगता है दल्ली राजहरा के रेंजर को अपने वातानुकित कमरे से बाहर निकलने की फुरसत ही नहीं है। वहीं उनके मा-तहत अमले को भी जंगलों की सुरक्षा की कोई परवाह ही नहीं है। अगर इन अधिकारियों और कर्मचारियों को इस गर्मी के मौसम में अपने सरकारी घरों से बाहर निकलना पसंद नहीं है। अगर दल्ली रेंजर को जंगलों की जरा भी परवाह रहती तो, दल्ली राजहरा के जंगलों में लगी आग पर कब से काबू पाया जा सकता था। उन्हें तो इस आग ने जेब गरम करने का बड़ा मौका दे दिया है। 
 
अब विभागीय रिकॉर्ड में दिखाया जाएगा कि फलाना जंगल में भीषण आग लगी थी, जिसमें कई बड़े पेड़ स्वाहा हो गए हैं और आग बुझाने लाख रुपए खर्च हो गए। भले ही अभी एक भी बड़ा पेड़ नहीं जला है, मगर जंगल में स्थित कई बड़े और कीमती पेड़ों को रातों रात कटवा कर जंगल माफिया के हवाले कर दिया जाएगा। यहां यह बताना जरुरी है कि दल्ली राजहरा के जंगल में लगी आग को बुझाने के लिए स्थानीय रेंजर ने अभी तक एक बूंद भी पानी नहीं डलवाया है।
 
वन कर्मियों के साथ ही वन सुरक्षा समितियों पर भी जंगलों की सुरक्षा की बड़ी जिम्मेदारी होती है। इसके लिए वन सुरक्षा समितियों को बड़ा फंड, आग पर नियंत्रण के लिए बाल्टी, अग्नि नियंत्रक तथा छोटे उपकरण उपलब्ध कराने का प्रावधान है। मगर दल्ली राजहरा रेंज की वन सुरक्षा समितियों को इस फंड से फूटी कौड़ी भी नहीं दी जाती। ना ही किसी तरह का उपकरण दिया जाता है। इस मद की सारी रकम अफसर का बैंक बैलेंस बन जाती है। लिहाजा वन सुरक्षा समितियों से जुड़े ग्रामीण भी हाथ पे हाथ धरे बैठे रहते हैं। दावानल (जंगल में लगी आग) को रोकने कोई भी समिति काम नहीं कर रही है। जबकि वन विभाग द्वारा लाखो रुपए प्रति माह रेंज के हिसाब से खर्च किया जाता है। अब सवाल यह है कि माथुर फार्म हाउस में लगी आग से हुए नुकसान की भरपाई कौन करेगा? रेंजर के पास इस सवाल का कोई जवाब है?
 
वन विभाग के दल्ली राजहरा रेंज में करीब दर्जन भर चौकीदार और फायर वाचर तैनात हैं, मगर उनकी ड्यूटी जंगलों की सेवा और सुरक्षा में लगाने के बजाय विभागीय अधिकारियों के अपने सरकारी क्वार्टर में सेवा करने के लिए लगाए हुए हैं। रेंजर, डिप्टी रेंजर और कुछ फारेस्ट गार्डो के निवासों में विभाग के चौकीदार और फायर वाचर ड्यूटी बजा रहे हैं। उन्हे पानी पिला रहे है और उनके लिए अंडा मुर्गा पकाकर खिला रहे है। उनकी पगार सरकारी खजाने से निकाली जा रही है। बताया गया है कि इन छोटे कर्मचारियों से विभाग के अधिकारी बाजार से सब्जी, राशन लाने, जूते पॉलिश करवाने, बच्चों को नहलाने, तैयार करने, स्कूल छोड़ने, क्वार्टर में भोजन बनाने, साहबों के पालतू कुत्तों को सुबह शाम सैर कराने, शौच के लिए ले जाने जैसे विशेष कार्य कराए जा रहे हैं।

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