छत्तीसगढ़ / बस्तर

45 लाख की लागत से बना जनजातीय गांव का बुरा हाल, ढह गईं झोपड़ियां, पर्यटक निराश

छत्तीसगढ़ के बस्तर में पर्यटन को बढ़ावा देने और दूसरे राज्यों से बस्तर घूमने आने वाले पर्यटकों को बस्तर की आदिवासी जनजातीय से रूबरू कराने जगदलपुर शहर के आसना पार्क में वन विभाग के द्वारा लाखों रुपए खर्च कर बनाया गया. जनजातीय गांव देखभाल के अभाव में बदहाल हो गया है. यहां बस्तर के रहने वाले अलग-अलग आदिवासी जनजाति के रहन-सहन और झोपड़ियो का जनजातीय जीवन चित्रण किया गया है, लेकिन आलम यह है कि इनमें से कई झोपड़ी पूरी तरह से ढह चुके हैं और कुछ घरों को दीमक खा चुके है. अब यह जगह असामाजिक तत्वों का अड्डा बन गया है. खास बात यह है कि साल भर पहले ही प्रदेश के मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने इस जनजातीय गांव का लोकार्पण किया था और लोकार्पण के शुरुआती दिनों में बड़ी संख्या में पर्यटक इस पार्क में आते थे और बस्तर के आदिवासी जनजातियों के कल्चर से रूबरू होते थे, लेकिन अब आलम यह है कि पर्यटक तो दूर स्थानीय लोग भी यहां घूमना पसंद नहीं करते हैं. कुल मिलाकर इस जनजातीय गांव में विभाग ने लाखों रुपए की बर्बादी कर दी है.

45 लाख रुपए खर्च कर बनाया गया था जनजातीय गांव

दरअसल बस्तर घूमने आने वाले पर्यटक आदिवासी संस्कृति और परंपरा को करीब से समझने और देखने के लिए काफी उत्सुक रहते हैं. इसी को ध्यान में रखते हुए वन विभाग द्वारा पर्यटकों को आदिवासियों की जीवन शैली और संस्कृति से अवगत कराने पिछले साल ही जगदलपुर शहर के आसना पार्क में वन विभाग ने करीब 45 लाख रुपए खर्च कर यहां पर जनजातीय गांव बनाया और 6 आदिवासी जनजातीय का जीवन चित्रण उनका रहन सहन और झोपड़ियो का भी निर्माण किया गया. इसका लोकार्पण खुद मुख्यमंत्री भूपेश बघेल के हाथों करवाया गया.

लेकिन बरसात के मौसम के साथ ही रखरखाव के अभाव में यह जनजातीय गांव बदहाल होना शुरू हुआ. बरसात के बाद लंबे समय तक ऐसी स्थिति में रहने के बाद इसे सवारने का काम तो शुरू हुआ, लेकिन अब इस ओर कोई ध्यान नहीं दिया जा रहा है. वन विभाग के जिम्मेदार  अधिकारियों ने बताया कि इसे फिर से लाखों रुपए खर्च कर संवारने की योजना बनाई गई है और काम भी शुरू हुआ है, लेकिन बाद में काम बंद कर दिया गया. हालांकि अब दोबारा से यहां काम शुरू करने की बात विभाग के अधिकारी कह रहे हैं

 ढह चुके हैं झोपड़ीनुमा मकान

आलम यह है कि अब यहां के कुछ झोपड़ीनुमा मकान ढह चुके हैं और अधिकतर को दिमक खा गए हैं , पूरी तरह से बदहाल हो चुके जनजातीय चित्रण को देखने के लिए लोगों से रखरखाव के नाम पर 10 रुपये का शुल्क लिया जा रहा है. कुछ लोग यहां पहुंच भी रहे हैं लेकिन वे यहां की स्थिति को देखकर बैरंग ही लौट रहे हैं. मध्य प्रदेश से पहुंचे पर्यटक विजय शर्मा ने बताया कि वह बस्तर के आदिवासी जनजाति जीवन चित्रण को देखने के लिए काफी उत्सुक थे, लेकिन आसना पार्क के भीतर इस जनजातीय गांव में ऐसा कुछ भी नहीं है, यहां लापरवाही की वजह से जनजातीय जीवन चित्रण पूरी तरह से बदहाल हो गया है और जो आदिवासियों के घरों के रूप में यहां मकान बनाए गए हैं वह भी ढह गए हैं.

रखरखाव के अभाव में हुआ है बुरा हाल

इधर इस जनजातीय गांव में देखरेख का काम कर रहे कर्मचारियों ने बताया कि शुरुआती दिनों में बड़ी संख्या में पर्यटक यहां इस जनजातीय गांव को देखने पहुंचते थे, लेकिन मेंटेनेंस के अभाव के चलते ही धीरे-धीरे पर्यटकों का आना काम हो गया है और अब ना के बराबर पर्यटक आ रहे हैं. अगर वन विभाग के अधिकारी इसके रखरखाव में ध्यान देते है तो जरूर इससे पर्यटन को बढ़ावा मिलेगा और लोग बस्तर के आदिवासी जीवनशैली से रूबरू हो सकेंगे.

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