मनोरंजन

रिश्तों में कड़वाहट घोलने के लिए बस एक ताना ही काफ़ी होता है, जानिए कैसे?

 क्या बात है आजकल बड़ी बनी-ठनी रहती हो? आख़िर इतना कहां घूमती हो?’

ज़रूरी बिज़नेस मीटिंग से लौटकर पारुल ने घर में क़दम रखा ही था कि सोफे पर बैठकर टीवी देख रहे अमित ने एक-एक शब्द चबाते हुए ताना मारा। पारुल तिलमिलाकर रह गई। उसने कलह के डर से चुप रहना सही समझा। समझदारी से काम लेते हुए उसने संयत स्वर में कहा, ‘बिज़नेस मीटिंग थी। एक डील में कुछ शर्तों पर सहमति नहीं हो रही थी। इसलिए थोड़ा समय लग गया।’

 

इसके बाद दोनों के बीच अगले एक हफ़्ते तक कोई बातचीत नहीं हुई। कुछ लोगों की आदत होती है कि वे अक्सर अपने जीवनसाथी, दूसरे परिजनों, अपनी संतान अथवा बुज़ुर्ग माता-पिता को ताना मारते हैं। सामने वाला जब आपत्ति जताता है तो वे अपनी बात का हर प्रकार से उचित सिद्ध करने लगते हैं। ऐसे में रिश्तों में अक्सर घुटन और खटास उत्पन्न होने लगती है।

‘तुम्हें मेरी परवाह नहीं रही’
गीतांजलि किसी मामूली-सी भूल या लापरवाही के लिए या फिर कभी-कभी तो सबकुछ सामान्य रहते हुए भी अपने पति अविनाश को बीच-बीच में ताना मारती रहती है कि तुम्हें मेरी बिल्कुल परवाह नहीं रही। पता नहीं तुम्हारा आजकल कहां दिमाग़ उलझा हुआ रहता है। दरअसल, उसका मक़सद पति को मानसिक दबाव में रखकर उसे दोष देते रहना है, ताकि वो अपराधबोध से ग्रस्त रहे।
अपनी किसी सहेली की सीख पर उसने यह फॉर्मूला अपना रखा है। यही तरीक़ा कई बार पति भी अपनाते हैं। ऐसी बात दिल की गहराई में चुभती है और जीवनसाथी को दुख होता है कि दिन-रात सब कुछ करने के बाद भी उसे यही सुनने को मिला। स्नेह और विश्वास ही परवाह का आईना हो सकते हैं।

‘तुम्हारी मित्र मंडली में मूर्ख भरे हैं’
मित्रता वह रिश्ता है जो किसी पर थोपा नहीं जाता है। कोई भी व्यक्ति ख़ुद अपनी रुचि और वैचारिक स्तर पर मेल-जोल रखने वालों को ही अपना दोस्त बनाता है। ऐसे में दोस्ती जीवनभर का रिश्ता होती है जिसे शादी से पहले और शादी के बाद भी निभाया जाता है।
जीवनसाथी अलग पृष्ठभूमि से होता है और उसके विचार व रुचियां भी अलग-अलग हो सकती हैं। मीनाक्षी का पति कई बार बात-बात में उसके दोस्तों को बेवकूफ़ कह देता है। कोई भी व्यक्ति प्रियजन का अपमान बर्दाश्त नहीं कर सकता। ज़ाहिर है, मीनाक्षी और उसके पति में शीत युद्ध की स्थिति चलती रहती है।

‘तुम सनकी हो’
शोभा का स्वभाव है लोगों की मदद करना। उसे समाज सेवा करना और धार्मिक गतिविधियों में सक्रिय रहना अच्छा लगता है। वह अक्सर घर के पुराने कपड़े या अनुपयोगी वस्तुएं भी बेचने या उनके बदले सामान लेने के बजाय वंचितों को दे देना ज़्यादा उचित समझती है। अक्सर रक्तदान के आयोजन या कंबल व वस्त्र वितरण आयोजनों में भी वह शामिल होती रहती है।
दिक़्क़त यह है कि उसके पति बजाय उसकी प्रशंसा करने या साथ देने के उसे अक्सर सनकी कहते हैं। जबकि आसपास के लोग, सभी रिश्तेदार और यहां तक कि शोभा के सास-ससुर भी उसके स्वभाव पर गर्व महसूस करते हैं और उसकी क़दर करते हैं। ऐसे में शोभा और उसके पति के बीच संबंधों में ज़रा भी गर्माहट नहीं है।

‘आजकल ज़्यादा ही बनठन कर रहती हो’
सजना-संवरना, सलीक़े से रहना और अच्छे कपड़े पहनना कई लोगों का शौक़ होता है। रेखा भी घरेलू कामकाज निपटाकर अच्छी तरह तैयार होकर ही सब्ज़ी ख़रीदने या शॉपिंग के लिए जाना चाहती है। लेकिन उसके पति राहुल को उसका ढंग से रहना भी नहीं सुहाता। वह शक की आग में ख़ुद भी जलता है और रेखा को भी इस बात से दुखी करता है।
वह ख़ुद अक्सर लापरवाही से रहता है, बिना प्रेस के कपड़े पहन लेता है या बिना शेविंग के अपनी दुकान चला जाता है। ज़ाहिर है, वह चाहता है कि रेखा भी ऐसा ही करे। लेकिन उसकी सोच ने उनके जीवन को दूभर बना दिया है।

Leave Your Comment

Click to reload image