छत्तीसगढ़ इतिहास

"हबीब साहब की 100वीं जयंती: छत्तीसगढ़ के महान कलाकार को सलाम, सीएम बघेल ने किया नमन"


रायपुर: छत्तीसगढ़, छत्तीसगढ़ी, लोक-कला, लोक-रंग से अगर दुनिया के कई देश परिचित हैं तो उसकी एक बड़ी वजह हबीब साहब रहे हैं. वही हबीब साहब जिनकी आज 100वीं जयंती है. आज विशेष मौके पर एक बार फिर हबीब साहब को सुरता(याद) कर रहे हैं. एक ऐसे महान कलाकार जिन्होंने छत्तीसगढ़ की धरा में जन्म लिया और यहां की मिट्टी की खुशबू को देश-दुनिया में पहुंचाने का काम किया. अपनी अद्भुत नाट्य शैली के लिए विश्व विख्यात रहे हबीब तनवीर रायपुर के रहने वाले थे. प्रदेश के मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने हबीब तनवीर जी की 100वीं जयंती पर उन्हें नमन किया है.



सीएम भूपेश बघेल ने ट्वीट कर लिखा है कि ‘छत्तीसगढ़ के गौरव, अंचल की कला को राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय मंचों तक पहुंचाने वाले प्रसिद्ध रंगकर्मी स्व. हबीब तनवीर जी की जयंती पर हम सब उनका पावन स्मरण करते हैं. राज्य शासन द्वारा रंगकर्म के क्षेत्र में हबीब तनवीर जी के योगदानों को अक्षुण्ण बनाये रखने के लिए उनके नाम से पुरस्कार प्रदान करने की भी घोषणा हमने की है. हबीब तनवीर जी को कई अवार्ड एवं वर्ष 2002 में पद्म विभूषण सम्मान मिला. वे 1972 से 1978 तक राज्यसभा सांसद भी रहे. उनका नाटक चरणदास चोर, एडिनवर्ग इंटरनेशनल ड्रामा फेस्टीवल (1982) में पुरस्कृत होने वाला ये पहला भारतीय नाटक गया. उनकी प्रमुख कृतियों में आगरा बाजार (1954) चरणदास चोर (1975) शामिल है.’



हबीब तनवीर जी का जीवन परिचय

हबीब साहब का जन्म 1 सितंबर 1923 को बैजनाथ पारा में हुआ था. तनवीर साहब ने स्कूली शिक्षा रायपुर से और स्नातक की उपाधि नागपुर से ली. इसके बाद उन्होने एमए की पढ़ाई अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय से पूरी की. बचपन से कला के प्रति आकर्षित रहने वाले हबीब साहब ने एमए की शिक्षा लेने के बाद खुद को पूरी तरह से थियेटर के लिए समर्पित कर दिया. उन्होंने भारत के साथ-साथ कई देशों की यात्राएं की और दुनिया भर के रंगकर्म का अध्ययन किया. नाट्य विधा की बारीकियों को समझने के बाद हबीब साहब ने भोपाल में नया थियेटर के नाम से नाट्य संस्था की स्थापना की.

नया थियेटर के जरिए उन्होंने नाट्य यात्रा प्रारंभ की. इस यात्रा के दौरान उन्होंने यह महसूस किया कि छत्तीसगढ़ की लोक-कला, लोक-रंग को दुनिया के सामने भव्य मंचों में लाया जाए. लिहाजा उन्होंने प्रदेश भर से नाचा कलाकारों को इक्कट्ठा किया. उन्होंने लोक कलाकारों को नया थियेटर में शामिल कर अपनी नई पारी की शुरुआत की. इस दौरान उन्होने मिट्टी की गाड़ी नाटक का निर्देशन किया. यह संस्कृत में लिखित नाटक का छत्तीसगढ़ी रूपांतरण था, जो उनका पहला महत्वपूर्ण छत्तीसगढ़ी नाटक बना.

बताते हैं कि नाचा कलाकारों को साथ लेकर जब हबीब साहब देश-दुनिया की यात्रा पर निकले तो दुनिया भर के नाट्य प्रेमी प्राचीन लोक नाट्य शैली को देखकर दंग रह गए. जिस तरह से एक जौहरी पत्थर को तराशकर उसे चमकदार हीरा बना देता है, कुछ इसी तरह से हबीब साहब ने नाचा के कलाकारों को तराशकर उन्हें नाट्य मंचों का हीरा बनाने का काम किया था. उन्होने दुनिया को छत्तीसगढ़ की रंग-परंपरा, छत्तीसगढ़ के रंगकर्मियों की कलाकारी और यहां की समृद्ध संस्कृति को दिखाया.



तनवीर साहब के जीवन के बीच एक महत्वपूर्ण जानकारी जिसे साझा करना जरूरी है वह है दाऊ मंदराजी. छत्तीसगढ़ी नाचा-गम्मत में जहां दाऊ मंदराजी, रामचंद्र देशमुख का नाम लिया जाता है, वहीं नाचा-गम्मत को नाचा कलाकारों के साथ उसे रंगकर्म के रूप में विश्व विख्यात बनाने का श्रेय हबीब तनवीर को जाता है. हबीब तनवीर ने आगरा बाजार, मोर नाँव दामाद गांव के नाँव ससुराल, चरनदास चोर, बहादुर कलारिन, राजरक्त से जैसे कई चर्चित नाटको का निर्देशन किया. ये वो नाटक थे जिसने छत्तीसगढ़ और छत्तीसगढ़ के कलाकारों की पहचान पूरी दुनिया में कराई.

छत्तीसगढ़ी भाषा में निर्मित चरन दास चोर नाटक इतना प्रसिद्ध हुआ कि पूरी दुनिया ने जाना की छत्तीसगढ़ की नाचा रंग-परंपरा कितना समृद्ध और विशाल है. चरन दास चोर में चोर की भूमिका अदा करने वाले स्वर्गीय पद्मश्री गोविंद राम निर्मलकर को रंगकर्मियों के बीच एक बड़े मंचीय नायक के रूप में उभार दिया.

हबीब साहब के कुछ प्रमुख छत्तीसगढ़ी नाटक

चरनदास चोर, बहादुर कलारिन, मोर नाँव दमाद, गाँव के नाँव ससुराल, मिट्टी की गाड़ी
छत्तीसगढ़ी लोक-गीतों, पहनावा का विशेष प्रयोग



हबीब साहब के नाटकों की एक सबसे बड़ी विशेषता यह रही है कि उन्होंने अपने अधिकतर नाटकों में छत्तीसगढ़ी लोक गीतों और पहनावा का प्रयोग किया. छत्तीसगढ़ी नाटकों में यह प्रयोग तो देखने में मिलता ही है, हिंदी के कई नाटकों में भी उन्होंने छत्तीसगढ़ी लोक गीतों का समावेश किया. हबीब साहब के नाटकों में पंथी, पंडवानी, भरथरी, गौरा-गौरी, जस गीतों का विशेष आकर्षण देखने को मिलता है. इसके साथ ही उन्होंने करमा और ददरिया के कई पारंपरिक गीतों को अपने नाटकों में भरपूर स्थान दिया है.

वास्तव में हबीब साहब रंग-मंच के महानायक थे. ऐसे महान कलाकार को आज हम उनके जन्मदिवस पर सादर नमन करते हैं.

 





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