संस्कृति

"ऋषि पंचमी: पापों का नाश करने वाला व्रत और उसकी महत्वपूर्ण कथा"

 

ऋषि पंचमी हिन्दू पंचाग के अनुसार भाद्रपद मास के शुक्ल पक्ष की पंचमी तिथि को मनाई जाती है. ऋषि पंचमी को भाई पंचमी के नाम से भी जाना जाता है. इस दिन सप्त ऋषि का आशीर्वाद प्राप्त करने और सुख शांति एवं समृद्धि की कामना से व्रत रखा जाता है. यह व्रत ऋषियों के प्रति श्रद्धा, समर्पण और सम्मान की भावना को प्रदर्शित करने का महत्वपूर्ण आधार बनता है. सप्तऋषि की विधि विधान से पूजा की जाती है. ऋषि पंचमी व्रत की कथा सुनी और सुनाई जाती है. ये व्रत पापों का नाश करने वाला व श्रेष्ठ फलदायी माना जाता है. ऋषि पंचमी के इस व्रत को करने से रजस्वला दोष भी मिट जाता है. माहवारी समाप्त हो जाने पर ऋषि पंचमी के व्रत का उद्यापन किया जाता है.

ऋषि पंचमी 2023 मुहूर्त

इस साल भाद्रपद मास के शुक्ल पक्ष की पंचमी तिथि 19 सितंबर 2023 दिन मंगलवार को दोपहर 01 बजकर 43 मिनट पर शुरू होगी और 20 सितंबर 2023 को दोपहर 02 बजकर 16 मिनट पर इसका समापन होगा. सप्त ऋषियों की पूजा करने का शुभ समय बुधवार को सुबह 11 बजकर 01 मिनट पर दोपहर 01 बजकर 28 मिनट तक है.

महिलाओं के लिए क्यों खास है ऋषि पंचमी ?

पौराणिक मान्यता के अनुसार स्त्रियों को रजस्वला में धार्मिक कार्य, घर के कार्य करने की मनाही होती है. ऐसे में इस दौरान अगर गलती से पूजा-पाठ की सामग्री को स्पर्श कर लें या फिर ऐसे धर्म-कर्म के काम में जाने-अनजाने कोई गलती हो जाए, तो इस व्रत के प्रभाव से स्त्रियां दोष मुक्ति हो जाती हैं. ये व्रत मासिक धर्म में हुई गलतियों के प्रायश्चित के रूप में किया जाता है. इसे हर वर्ग की महिला कर सकती है. कुछ स्त्रियां हरतालिका तीज से इस व्रत का पालन ऋषि पंचमी के दिन तक कराती हैं.

पूजा विधि

प्रातः स्नानादि से निवृत्त होकर शुद्ध वस्त्र धारण करें. घर के स्वच्छ स्थान पर हल्दी, कुमकुम, रोली आदि से चौकोर मंडल बनाकर उस पर सप्तऋषि की स्थापना करें. शुद्ध जल एवं पंचामृत से स्नान कराएं. चन्दन का टीका, पुष्प माला व पुष्प अर्पित कर यज्ञोपवीत (जनेऊ) पहनाएं.

श्वेताम्बरी वस्त्र अर्पित करें. शुद्ध फल, मिठाई आदि का भोग लगाएं. अगरबत्ती, धूप, दीप आदि जलाएं. पूर्ण भक्ति भाव से प्रणाम करें. साथ ही पूर्ण ब्रह्मचर्य व्रत का पालन किया जाता है.

ऋषि पंचमी की व्रतकथा

विदर्भ देश में उत्तंक नामक एक सदाचारी ब्राह्मण रहता था. उसकी पत्नी बड़ी पतिव्रता थी, जिसका नाम सुशीला था. उस ब्राह्मण के एक पुत्र और एक पुत्री थी. विवाह योग्य होने पर उसने समान कुलशील वर के साथ कन्या का विवाह कर दिया. दैवयोग से कुछ दिनों बाद वह विधवा हो गई. दुखी ब्राह्मण दम्पति कन्या सहित गंगा तट पर कुटिया बनाकर रहने लगे. एक दिन ब्राह्मण कन्या सो रही थी कि उसका शरीर कीड़ों से भर गया. कन्या ने सारी बात मां से कही. मां ने पति से सब कहते हुए पूछा- प्राणनाथ! मेरी साध्वी कन्या की यह गति होने का क्या कारण है?

उत्तंक ने समाधि द्वारा इस घटना का पता लगाकर बताया- पूर्व जन्म में भी यह कन्या ब्राह्मणी थी. इसने रजस्वला होते ही बर्तन छू दिए थे. इस जन्म में भी इसने लोगों की देखा-देखी ऋषि पंचमी का व्रत नहीं किया. इसलिए इसके शरीर में कीड़े पड़े हैं. यदि यह शुद्ध मन से अब भी ऋषि पंचमी का व्रत करें तो इसके सारे दुख दूर हो जाएंगे और अगले जन्म में अटल सौभाग्य प्राप्त करेगी. पिता की आज्ञा से पुत्री ने विधिपूर्वक ऋषि पंचमी का व्रत एवं पूजन किया. व्रत के प्रभाव से वह सारे दुखों से मुक्त हो गई. अगले जन्म में उसे अटल सौभाग्य सहित अक्षय सुखों का भोग मिला.

 




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