संस्कृति

होलिका दहन का त्योहार क्यों मनाया जाता है..... यहां जानिए इसकी पौराणिक कथा.....

 दिवाली की तरह ही होली भी हिंदुओं का एक प्रमुख त्योहार है जो हर साल फाल्गुन पूर्णिमा के दिन मनाया जाता है। इस तिथि पर शाम के समय शुभ मुहूर्त में होलिका दहन की परंपरा निभाई जाती है तो वहीं इसके अगले दिन रंगवाली होली खेली जाती है। होलिका दहन के त्योहार को छोटी होली के नाम से भी जाना जाता है। इस साल ये त्योहार 24 मार्च को मनाया जाएगा। इस दिन भहवान नरसिंह की पूजा की जाती है। यहां जानिए होलिका दहन की कहानी।

होलिका दहन की कथा:-

होली का त्योहार मुख्य रूप से हिरणकश्यप, उसकी बहन होलिका और पुत्र प्रहलाद से संबंधित माना जाता है। कहते हैं धरती पर एक राजा हुआ करता था जिसका नाम था हिरण्यकश्यप। उसे अपनी शक्तियों का बेहद घमंड हो गया था। वो चाहता था कि उसकी प्रजा किसी देवता की नहीं बल्कि उसे ही पूजे। लेकिन हिरण्यकश्यप का खुद का पुत्र प्रह्लाद भगवान विष्णु का परम भक्त था। ये बात हिरण्यकश्यप को बिल्कुल भी अच्छी नहीं लग रही थी। हिरण्यकश्यप ने अपने पुत्र प्रह्लाद को समझाने की बहुत कोशिश की लेकिन प्रह्लाद ने अपने पिता की एक नहीं सुनी और वह भगवान विष्णु की भक्ति में लगा रहा। क्रोधित होकर हिरणकश्यप ने प्रह्लाद को यातनाएं देनी शुरु कर दी, लेकिन फिर भी प्रह्लाद ने भगवान विष्णु की भक्ति नहीं छोड़ी। तब हिरण्यकश्यप ने प्रह्लाद को जान से मारने की योजना बनाई जिसमें उसका साथ दिया उसकी बहन होलिका ने।

होलिका को अग्नि से न जलने का वरदान प्राप्त था। इसलिए होलिका प्रह्लाद को लेकर अग्नि में बैठ गयी। प्रहलाद इसके बाद भी निरंतर श्री हरि विष्णु भगवान की भक्ति से लगे रहे। परिणाम स्वरूप इस अग्नि में होलिका खुद जल कर राख हो गई और जबकि प्रहलाद का बाल भी बांका नहीं हुआ। कहते हैं इसी घटना की याद में होलिका दहन का त्योहार मनाए जाने की परंपरा शुरु हुई। होलिका दहन का यह शुभ पर्व इस बात का संदेश देता है कि भगवान सदैव अपने भक्तों की रक्षा करते हैं।

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