रोचक तथ्य
सर्दियों में skin की नमी और त्वचा लगने लगती है रूखी, इन तरीकों से स्किन पर apply करें कच्चा दूध…
Skin care tips : ठंड के मौसम में त्वचा से जुड़ी समस्याओं का सामना सबसे ज्यादा करना पड़ता है।दरअसल इस मौसम में हवा में नमी कम होती है जिसके चलते स्किन पर ड्राईनेस बनी रहती है।इसलिए विंटर सीजन में सिर्फ फेस को ही नहीं बल्कि पूरे शरीर को मॉइश्चराइज करके रखना पड़ता है। जरा सी भी लापरवाही चेहरे पर झुर्रियां और फाइन लाइन उभारती हैं।स्किन में नमी बनाए रखने के लिए कुछ लोग महंगी क्रीम का इस्तेमाल करते हैं तो कुछ घरेलू उपाय का सहारा लेते हैं। आज हम आपको बताएंगे कि कच्चे दूध को किन 3 तरीकों से चेहरे पर अप्लाई करके इस मौसम में skin को मॉइश्चराइज कर सकते हैं।
कच्चा दूध कैसे करें फेस पर अप्लाई
कच्चा दूध और शहद : स्किन को मॉइश्चराइज करने के लिए आप दूध और शहद बराबर मात्रा में लेकर फेस पैक बना लीजिए। अब आप चेहरे को वाइप से अच्छे से क्लीन कर लीजिए।फिर आप इस पैक को चेहरे पर अप्लाई कर लीजिए और 15 मिनट बाद गुनगुने पानी से पैक को साफ कर लीजिए। इससे चेहरे पर निखार आएगी और स्किन में नमी बनी रहेगी।
"जयपुर: 'गुलाबी शहर' का अद्भुत इतिहास और सौंदर्य"
जयपुर, राजस्थान की राजधानी, “गुलाबी नगर” के रूप में प्रसिद्ध है और यह भारत में एकमात्र ऐसा नगर है जिसकी योजना और निर्माण को किसी गढ़िया विशेषज्ञ की खूबसूरत कला कहा जाता है। जयपुर की गवर्नर, महाराजा सवाई जय सिंह द्वितीय ने इसे 18वीं सदी में नगर की योजना के साथ बनवाया था। शहर की सड़कों का नक्शा ग्रिड पैटर्न में बनाया गया है, जिससे यह खिलवाड़ से भरपूर दिखता है। शहर की उपनगरियाँ खिलौना की तरह दिखती हैं, जिनका प्रयोग दुर्गों और उनके पास रहने वाले लोगों की सुरक्षा में होता था।
जयपुर को “गुलाबी शहर” क्यों कहा जाता है?
मान्यता के अनुसार, जयपुर को पिंक शहर कहने का कारण यह है कि 1876 ईस्वी में महाराजा सवाई राम सिंह द्वितीय ने ब्रिटिश राज शासकीय परिषद सदस्यों के स्वागत के लिए शहर को गुलाबी रंग में रंगवाया था। इस समय, गुलाबी रंग शांति, मितव्यय, और सौभाग्य का प्रतीक माना जाता था, और महाराजा ने इसे ब्रिटिश साम्राज्य के साथीत्व और मित्रता की ओर एक प्रतीक के रूप में उपयोग किया। गुलाबी शहर का यह नाम समृद्धि और प्राकृतिक सौंदर्य की प्रतीकता के रूप में भी जाना जाता है। जयपुर में गुलाबी रंग की पत्थरों से बनी भव्य संरचनाएं, शानदार महल और हवेलियाँ, और साहसिक दरबार सभाएं हैं जो इस शहर की विशेषता को और भी प्रखर करती हैं।
इस तरीके से, जयपुर को “गुलाबी शहर” कहने का एक महत्वपूर्ण कारण यह है कि यह शहर अपने ऐतिहासिक, सांस्कृतिक, और सौंदर्यिक महत्व के लिए प्रसिद्ध है। जयपुर का एक और दिलचस्प तत्व है “हवा महल” जो एक अत्यंत विशेष निर्माण है। यह महल शहर के महाराजों को गरमियों में ठंडी हवा प्रदान करने के लिए डिज़ाइन किया गया था। इसमें 953 छोटी-बड़ी खिड़कियाँ हैं जिनसे ताज़ा और ठंडी हवा आती थी, और यह शहर की गरमियों में एक अद्वितीय अनुभव प्रदान करता था। इस रूप में, जयपुर अपने अद्वितीय शहरी निर्माण, गवर्नमेंट डिज़ाइन, और ऐतिहासिक धरोहर के साथ भारतीय सभ्यता और कला का महत्वपूर्ण हिस्सा बनता है।
"फेसबुक की प्राइवेसी पॉलिसी पर वायरल पोस्ट: आखिर क्या है सच्चाई ?"
सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म फेसबुक पर पोस्ट की बाढ़ सी आ गई है, कई लोग फेसबुक पर धड़ाधड़ पोस्ट किए जा रहे हैं जिसमें इस बात का दावा हो रहा है कि कल से Facebook नए नियम लागू करने वाला है. इस पोस्ट के मुताबिक, फेसबुक का नया नियम आने के बाद कंपनी यूजर्स के फेसबुक डेटा जैसे कि नाम, तस्वीर, वीडियो और मोबाइल नंबर आदि का इस्तेमाल बिजनेस के लिए कर पाएगी. फेसबुक पर भेड़ चाल शुरू हो गई है, लोग एक-दूसरे के पोस्ट देखने के बाद खुद के टाइमलाइन पर धड़ाधड़ पोस्ट शेयर करने लगे हैं. जिसे देखो फेसबुक पर पोस्ट कर कंपनी को यही आदेश दे रहा है कि मेरा डेटा का इस्तेमाल नहीं किया जाए.
कौन सा पोस्ट हो रहा वायरल?
याद रखें कि कल से नया फेसबुक नियम (उर्फ… नया नाम मेटा) शुरू हो रहा है, जहां वे आपकी तस्वीरों का उपयोग कर सकते हैं. मत भूलो कि अंतिम तिथि आज है!!! मैं फेसबुक या फेसबुक से जुड़ी किसी भी इकाई को अपने अतीत और भविष्य के चित्रों, सूचनाओं, संदेशों या प्रकाशनों का उपयोग करने की अनुमति नहीं देता.
इस बयान के साथ, मैं फेसबुक को सूचित करता हूं कि इस प्रोफ़ाइल और/या इसकी सामग्री के आधार पर मेरे खिलाफ खुलासा, प्रतिलिपि, वितरण या कोई अन्य कार्रवाई करना सख्त वर्जित है निजता का उल्लंघन करने पर कानून द्वारा दंडित किया जा सकता है.
यदि आप चाहें तो आप इस संस्करण को कॉपी और पेस्ट कर सकते हैं यदि आप कम से कम एक बार कोई बयान प्रकाशित नहीं करते हैं तो यह चुपचाप आपकी तस्वीरों के उपयोग की अनुमति देगा, साथ ही आपकी प्रोफ़ाइल और स्थिति अपडेट में मौजूद जानकारी भी. सांझा ना करें. कॉपी और पेस्ट.
क्या है सच्चाई ?
दरअसल यह पोस्ट पूरी तरह से एक भेड़ चाल का हिस्सा है. किसी को सच्चाई की जानकारी नहीं है, लेकिन सभी लोग कॉपी-पेस्ट जरूर कर रहे हैं. फेसबुक ने इस तरह का कोई बयान जारी नहीं किया है. इस तरह का पोस्ट पहले भी वायरल हुई थी. 2022 में भी यही पोस्ट वायरल हुआ था. सबसे जरूरी बात यह है कि फेसबुक की पॉलिसी पर आपने पहले ही अपनी सहमति दे दी है. बिना सहमति आप फेसबुक को इस्तेमाल ही नहीं कर सकते. यदि आपके किसी डाटा का इस्तेमाल फेसबुक को करना होगा तो वह आपके आदेश का इंतजार नहीं करेगा. एक बात और कि इंटरनेट की दुनिया में इतना समझ लीजिए कि आपका निजी कुछ भी नहीं है जो भी है सार्वजनिक है.
"ध्यान दें: फोन कवर में नोट रखने से आ सकते हैं खतरे, जानें कैसे"
अक्सर आपने देखा होगा कि लोग पैसे रखने के लिए मोबाइल कवर का सहारा लेते हैं. हमें लगता है कि यहां नोट सेफ रहेगा और जब जरूरत पड़ेगी तो आसानी से कवर से निकालकर दे देंगे. लेकिन यह आदत खतरनाक साबित हो सकती है. इससे आपकी जान भी जा सकती है. जी हां, आपने सही सुना, फोन कवर में नोट रखने से आग लगने के चांसेस बढ़ जाते हैं.
हीट रिलीज़ नहीं हो पाती
फोन जब आप ज्यादा इस्तेमाल करते हैं तो आपने ध्यान दिया होगा कि वह गर्म हो जाता है. जैसे ही फोन गर्म होता है फोन का बैक साइड जलने लगता है. ऐसे में अगर आपने अपने फोन कवर के पीछे नोट रखा है तो फोन का हीट रिलीज़ नहीं हो पाता और इसकी वजह से वो ब्लास्ट हो सकता है. यही वजह है कि एक्सपर्ट्स कहते हैं कि फोन में ज्यादा टाइट कवर नहीं लगाना चाहिए, क्योंकि इसकी वजह से भी फोन ब्लास्ट हो सकता है.
नोट रखने से चार्जिंग और नेटवर्क में आती है समस्या
जब फोन लगातार इस्तेमाल किया जाता है या फिर चार्जिंग पर लगा होता है उस समय हीटिंग समस्या बढ़ जाती है. कवर के पीछे नोट रखे होने की वजह से इसे ठंडा होने पर भी काफी समय लगता है. और यही वजह से ही हमारा फोन ओवरहीट होने की वजह से ब्लास्ट कर जाता है.
स्मार्टफोन के बैक कवर पर रखे नोट सिर्फ हीटिंग का ही कारण नहीं बनते बल्कि इसकी वजह से कई बार फोन में नेटवर्क की समस्या भी आन लगती है. दरअसल ज्यादा तर स्मार्टफोन के बैक पैनल पर नेटवर्क के लिए एंडिया दिया जाता है और नोट रखे होने के वजह से फोन पर प्रॉपर नेटवर्क नहीं आ पाता.
"मोमोज़ के सेहत पर असर: जानें, कैसे हो सकते हैं 5 खतरनाक प्रभाव"
"मोमोज के सेवन से हो सकते हैं ये 5 जख्मी परिणाम: आपके स्वास्थ्य पर असर"
स्कूल, कॉलेज, ऑफिस से लौटते वक्त आपने यह काम तो जरूर किया होगा कि रोड किनारे खड़े होकर मोमोज खा ली होगी. या पैक करवा लिया होगा ताकि घर पहुंचकर खा लें. लेकिन क्या आपको पता है ये जो जल्दी-जल्दी में आप सड़क किनारे मोमोज खाते हैं वह आपके शरीर के लिए कितना ज्यादा खतरनाक साबित हो सकता है. आज हम इसी पर बात करेंगे कि यह जो सिंपल से मोमोज दिखते हैं.
जिसे देखकर हमें लगता है कि इसमें कोई ऑयल या मसाला तो नहीं तो यह शरीर के लिए कोई नुकसानदायक नहीं चाहे जितनी भी खा लो लेकिन आपकी जानकारी के लिए बता दें कि ऐसा बिल्कुल नहीं है.किडनी, पैक्रियाज डैमेज आपने गौर किया होगा कि घर में बनाए हुए मोमोज थोड़े पीले होते हैं जबकि मार्केट वाले बिल्कुल वाइट । यह इसलिए होता है क्योंकि इन्हें वाइट और सॉफ्ट बनाने के लिए ब्लीच, क्लोरीन गैस, बेंजोयल पराक्साइड, ऐज़ो कर्बेमिड मिलाया जाता है।
यह केमिकल किडनी और पैंक्रियाज को डैमेज करते हैं साथ ही डायबिटीज होने का खतरा भी बढ़ाते हैं ।आंतों को नुकसान पहुंचाती लाल चटनी मोमो के साथ मिलने वाली तीखी लाल मिर्च की चटनी उत्तेजक होती है, इसकी क्वालिटी भी लो होती है, जिससे पाइल्स, गैस्ट्राइटिस, पेट तथा आंतों में ब्लीडिंग हो सकती हैं।
कुछ मोमोज बेचने वाले मोमोज में मोनोसोडियम ग्लूटामैट ( , है और इसे सुगंधित बनाता है। इस MSG से मोटापा बढ़ता है। ब्रेन तथा नर्क्स की समस्या, चेस्ट पेन, हार्ट रेट और बीपी बढ़ने जैसे शिकायत हो हो जाती है।
"1906 से 1947: राष्ट्रीय ध्वज में आये बदलाव की कहानी"
रायपुर: भारत के राष्ट्रीय ध्वज में 1906 से लेकर साल 1947 तक अलग-अलग बदलाव आए हैं. आज जो हमें ध्वज दिखता है वह पहले से वाले काफी अलग है. राष्ट्रीय ध्वज का इतिहास बहुत पुराना है. वर्तमान में जो हमारे देश राष्ट्रीय ध्वज है, उससे पहले कई बार ध्वज बदल चुके हैं. अशोक चक्र वाले इस झंडे के राष्ट्रीय ध्वज बनने की कहानी बहुत लंबी है और इस यात्रा में भारत के कई झंडे रह चुके हैं.
1857 को मनाया था पहला स्वतंत्रता संग्राम
इतिहासकार कपिल बताते हैं कि 1857 को हमने पहला स्वतंत्रता संग्राम मनाया था. उस दौरान सबका अपना-अपना झंडा था, लेकिन पहली बार क्रांतिकारियों ने एक झंडे को अपना झंडा बनाया. वह एक हरे रंग का झंडा था जिसके ऊपर कमल था. आजाद हिंदुस्तान की पहली लड़ाई के लिए यही वो झंडा था जिसे फहराया गया था.
उन्होंने आगे बताया कि साल 1906 में कोलकाता के पारसी बागान चौक पर तिरंगा फहराया गया था. इस पर हरे पीले और लाल रंग से बनाया गया था. इसके मध्य में वंदे मातरम भी लिख गया था.
पेरिस में फहराया गया ध्वज
इतिहासकार कपिल बताते हैं कि उसके बाद 1907 में मैडम कामा द्वारा भारतीय क्रांतिकारियों की मौजूदगीमें पेरिस में यह ध्वज फहराया गया था. इसमें 1906 वाले तिरंगे से कुछ ज्यादा बदलाव नहीं थे, लेकिन इसमें सबसे ऊपर लाल पट्टी का रंग केसरिया का और कमल के बजाय सात तारे थे जो सप्त ऋषि का प्रतीक थे. इसमें आखरी पट्टे पर सूरज और चांद भी अंकित किए गए थे.
"भारतीय सेना की शानदार कारें: जिन्होंने सेना के साथ बढ़ाया देश का सम्मान"
आज पूरा देश 77वां स्वतंत्रता दिवस मना रहा है. राजपथ पर हुई परेड में आज पूरी दुनिया ने भारतीय सेना का पराक्रम देखेगा. ऐसे में आज हम आपको उन 5 ‘मेड इन-इंडिया’ कारों के बारे में बताने जा रहे हैं, जो पिछले कई सालों से देश की रक्षा में इस्तेमाल (Indian army official cars) की जा रही हैं. भारतीय सेना के बेड़े में शामिल इन भारतीय कारों में Maruti Suzuki Gypsy (मारुति सुजुकी जिप्सी), Hindustan Ambassador (हिंदुस्तान अंबेस्डर) से लेकर Tata Safari Storme (टाटा सफारी स्टॉर्म) तक शामिल हैं. इसके अलावा सरहद पर पेट्रोलिंग के लिए Mahindra Scorpio (महिंद्रा स्कॉर्पियो) और एंबुलेंस के लिए Tata Sumo (टाटा सूमो) जैसी स्वदेशी कारों ने अपना जबरदस्त योगदान दिया है.
हिंदुस्तान एम्बेसडर
यह भारत की एक आइकोनिक कार है, जो भारतीय आर्मी द्वारा भी उपयोग में लायी जा चुकी है. यह आधिकारिक कार्यों के लिए उपयोग में लायी जाती है. इसे अधिकारियों द्वारा स्टाफ कार के रूप में उपयोग में लाया जाता है. हिंदुस्तान एम्बेसडर शानदार स्पेस के साथ आती है. यह अपने बेहतरीन डिजाईन, विश्वसनीयता, तथा कम मेंटेनेंस की वजह से लोकप्रिय थी और इस वजह से आर्मी भी उपयोग करती थी. हिंदुस्तान एम्बेसडर का प्रोडक्शन 2014 में बंद कर दिया गया था.
मारुति जिप्सी
दूसरे नंबर पर शानदार ऑफ रोड कार मारुति जिप्सी है, जिसे भारतीय सेना में 1991 में शामिल किया गया था. अपने जबरदस्त फीचर्स के चलते इस कार ने भारतीय सेना में अपनी खास जगह बनायी. इस समय भारतीय सेना में लगभग 31,000 जिप्सी अपनी सेवाएं दे रही हैं. हालांकि इनमें कई पुरानी हो चुकी हैं.
टाटा सूमो
टाटा सूमो (Tata Sumo) का इस्तेमाल भारतीय सेना में ज्यादा तर एंबुलेंस वाहन के तौर पर होता है. इसमें एक साथ 9 लोग बैठ सकते हैं. इसमें 3.0-लीटर का CR4 डीजल इंजन मिलता है, जो 85PS का मैक्सिमम पावर और 250Nm का पीक टॉर्क जनरेट करता है. मुश्किल सड़कों पर बिना रुके चलने के लिए इसमें 4X4 व्हील ड्राइव सिस्टम मिलता है.
टाटा सफारी स्टॉर्म
भारतीय सेना में टाटा सफारी की इस कार का इस्तेमाल काफी समय से हो रहा है. सेना के लिए इसका एक्सक्लूसिव मैट ग्रीन वेरिएंट आता है. इस कार में 2.2 लीटर, 4-सिलिंडर वाला टर्बोचार्ज्ड इंजन लगा है, जो 154 bhp का पावर और 400 Nm का टॉर्क जेनरेट करता है. मुश्किल रास्तों पर चलने के लिए इसमें 4X4 व्हील ड्राइव सेटिंग दी गई है.
महिंद्रा स्कॉर्पियो 4×4
वर्तमान में स्कॉर्पियो क्लासिक को सिर्फ सीमित वैरिएंट में बेचा जाता है. भारतीय आर्मी ने हाल ही में इस एसयूवी के 1470 यूनिट का आर्डर दिया है. यह स्कॉर्पियो क्लासिक 4×4 मॉडल होने वाली है.
"भारत के साथ 5 ऐसे देश जो मनाते हैं स्वतंत्रता दिवस: जानें उनकी कहानियाँ"
भारत में स्वतंत्रता दिवस हर्षोउल्लास के साथ मनाया जाता है। लेकिन आपको बता दें कि भारत के अलावा दुनिया में ऐसे 5 देश और भी है जो 15 अगस्त को स्वतंत्रता दिवस के रूप में मनाते है।
देश में अमृत महोत्सव चला रहा है इस साल भारत को आजादी के 76 साल पुरे हो जाएंगे। सैकड़ो साल भारत पर ब्रिटिश शासको का कब्ज़ा रहा है गुलामी के दौर से भारत 15 अगस्त 1947 को स्वतंत्र हुआ। इसलिए 15 अगस्त को पुरे भारतवर्ष में स्वतंत्रता दिवस धूमधाम से मनाया जाता है। लेकिन क्या आप जानते है ? कि भारत के अलावा इन देशो में भी मनाया जाता है स्वतंत्रता दिवस , तो आइये एक नजर डालते है उन पांच देशो पर।
भारत के साथ इन 5 देशों में भी मनाया जाता है 15 अगस्त
दक्षिण कोरिया
भारत के साथ दक्षिण कोरिया भी 15 अगस्त को अपने स्वतंत्रता दिवस का जश्न मनाता है। पहले यह देश जापान के अधीन था, जिसके बाद कोरिया ने अपनी आजादी प्राप्त की।
बहरीन
बहरीन ने 15 अगस्त 1971 को अपनी स्वतंत्रता प्राप्त की थी। इस दिन बहरीन में राजकीय परिवर्तन हुआ था और ईसा बिन सलमान अल खलीफा को उनके नए प्रमुख के रूप में चुना गया था।
उत्तर कोरिया
भारत के साथ उत्तर कोरिया भी 15 अगस्त को स्वतंत्रता दिवस के तौर पर मनाता है। इस देश ने भी पहले जापान के अधीन रहकर उनकी दासता से आजादी प्राप्त की थी।
कांगो
कांगो ने 15 अगस्त 1960 को फ्रांसीसी शासन से आजादी प्राप्त की थी। यह देश मध्य अफ्रीका में स्थित है और ब्रिटिश शासकों के कब्जे से मुक्त होकर आजाद हुआ था।
लिकटेंस्टीन
भारत के साथ लिकटेंस्टीन भी 15 अगस्त को स्वतंत्रता दिवस के रूप में मनाता है। यह देश पहले जर्मनी के अधीन था और उसकी बाद आजाद हुआ। 1940 में इस दिन लिकटेंस्टीन ने अपने राष्ट्रीय दिवस के रूप में घोषणा की थी और तब से हर साल इसे मनाया जाता है।
"Happy Independence Day : 60 साल पहले सिगरेट की डिब्बी में बसी थी 'ऐ मेरे वतन के लोगों' की दर्दभरी भावनाओं की कहानी"
देश आजादी का 77वां वर्षगांठ मनाने के लिए पूरी तरह तैयार है. देशभक्ति की भावना से लबरेज गाने हमें आजादी के महत्व को अच्छी तरह समझा देते हैं. भले ही हमने आजादी का वो संघर्ष ना देखा है, लेकिन हिंदी सिनेमा की देशभक्ति फिल्मों में काफी हद तक हम उससे रूबरू हो चुके हैं. देशभक्ति गानों में सबसे अच्छा गाना ऐ मेरे वतन के लोगों है.
इस गाने को सुनते ही सभी की आंखें नम हो जाती हैं. आजादी के लिए लड़ाई और हमारे शहीदों के बलिदान को समर्पित ये गाना आज भी रोंगटे खड़े कर देता है. लेकिन इस गाने के बनने के पीछे की कहानी भी दिलचस्प है. जो शायद ही कोई जानता है. ये गाना 1963 में लिखा गया था. उस लिहाज से इस साल इसे 60 साल पूरे हो चुके हैं. कवि प्रदीप इसके रचयिता थे.
कवि प्रदीप ने लिखा, लता मंगेशकर ने गाया
भारत और चीन के बीच 1962 में युद्ध हुआ, जिसमें भारत को हार का सामना करना पड़ा था. इस युद्ध के बाद आए गणतंत्र दिवस पर दिल्ली में होने वाले समारोह के लिए खासतौर से कवि प्रदीप से एक गीत की रचना करने का आग्रह किया गया था. जिसे उन्होंने खूब लिखा और आवाज दी स्वर कोकिला लता मंगेशकर ने. दिल्ली के नेशनल स्टेडियम में तत्कालीन प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू के सामने उन्होंने ये गाना गाया तो तब तालियों की गड़गड़ाहट से पूरा स्टेडियम गूंज उठा और आंखों से अश्रु धारा बह निकली थी. 26 जनवरी 1963 को ये पहली बार गाया गया था.
समंदर किनारे टहलते हुए कवि प्रदीप ने लिखा था गीत
कहा जाता है कि जब देशभक्ति की भावना से लबरेज एक गीत कवि प्रदीप को लिखने का जिम्मा दिया गया, तो वो इसे लेकर काफी गंभीर थे. एक दिन वो समंदर किनारे टहलते हुए लहरों को निहार रहे थे, तभी उनके दिमाग में कुछ पंक्तियां आईं और बिना देर करते हुए उन्होंने उन लाइनों को वहीं लिख डाला. लेकिन वहां पेपर मौजूद नहीं था. लिहाजा सिगरेट की डिब्बी में अंदर मौजूद रहने वाले कागज पर ही उन्होंने इस गीत की शुरुआती लाइनें लिख दी थीं. बाकि गाना बनने के बाद इस गाने ने क्या इतिहास रचा वो हम सब जानते हैं.
"आज के Google Doodle में कौन है चश्मे के पीछे छुपी महिला? जानिए 'कैट-आई' फ्रेम के आविष्कारक के बारे में"
आज के समय में हर चौथे-पांचवे इंसान की आंखों में चश्मा चढ़ा दिख जाएगा। एक समय था जब लोगों को बहुत उम्र दराज होने और नजर का चश्मा चढ़ता था, और आज का समय है जहां चश्मा एक तरह से फैशन सिम्बल बन गया है।पर आज हम अचानक चश्मे की बात क्यों कर रहे हैं। दरअसल आज का गूगल आप open करेंगे तो इसमें एक बेहद दिलचस्प डूडल आपको नजर आएगा। जिसमे चश्में के पीछे एक महिला दिख रही है। क्या आप जानना चाहते हैं कि ये चश्मे के पीछे की महिला आखिर है कौन?
Google ने अमेरिकी कलाकार, डिजाइनर और आविष्कारक अल्टीना शिनासी की एनिवर्सरी मनाई है। उन्हें फैशन और आईवियर डिजाइन में उनके अभूतपूर्व योगदान के लिए जाना जाता है। उनकी असाधारण यात्रा ने उन्हें प्रतिष्ठित हार्लेक्विन चश्मे का फ्रेम बनाने के लिए प्रेरित किया, जिसे अब व्यापक रूप से “कैट-आई” फ्रेम के रूप में पहचाना जाता है। शिनासी की भावना और दृढ़ संकल्प ने फैशन इंडस्ट्री में एक स्थायी विरासत छोड़ते हुए, आईवियर की दुनिया को नया आकार दिया।
कौन है ये शिनासी (Google Doodle)
अल्टीना शिनासी एक प्रसिद्ध अमेरिकी कलाकार, डिजाइनर और आविष्कारक रही हैं। 4 अगस्त 1907 को मैनहट्टन, न्यूयॉर्क में अप्रवासी माता-पिता के घर जन्मी शिनासी की कलात्मक यात्रा पेरिस में शुरू हुई और फैशन और फिल्म की दुनिया में उनके रचनात्मक योगदान के साथ समाप्त हुई।स्कूली शिक्षा पूरी करने के बाद अल्टीना शिनासी ने पेरिस में पेंटिंग के प्रति अपने जुनून को आगे बढ़ाया। उन्होंने न्यूयॉर्क में द आर्ट स्टूडेंट्स लीग में अपने कौशल को और निखारा।अल्टीना के जीवन में एक खास मोड़ तब आया जब वे फिफ्थ एवेन्यू पर कई दुकानों के लिए विंडो ड्रेसर के रूप में काम करती थी। इसी दौरान, उन्हें साल्वाडोर डाली और जॉर्ज ग्रॉज जैसे प्रसिद्ध कलाकारों के साथ कलोबोरेशन करने का मौका मिला जिसने उनकी कलात्मक दृष्टि को काफी प्रभावित किया और उन्होंने काफी कुछ सीखा।। उनका निधन 19 अगस्त 1999 को हुआ।
ऐसे आया कैट-आई फ्रेम का idea (Google Doodle)
बात करें कैट-आई फ्रेम की तो इसका आइडिया शिनासी को तब आया, जब उन्होंने महिलाओं के आईवियर के लिए स्टाइलिश option की कमी देखी। महिलाओं के आईवियर के ऑप्शन को बढ़ाने के लिए संकल्पित शिनासी ने इटली के वेनिस में कार्नेवल उत्सव के दौरान पहने जाने वाले हार्लेक्विन मास्क से इस फ्रेम को बनाने की प्रेरणा ली। उनका मानना था कि मास्क के नुकीले किनारे एक महिला के चेहरे को खूबसूरती से सजाने में मददगार हो सकते हैं। एक स्थानीय दुकान के मालिक ने उनकी डिजाइन की क्षमता को पहचाना और इस तरह से कैट-आई फ्रेम बनाने में उन्हें सफलता मिली।
लॉर्ड एंड टेलर अमेरिकन डिजाइन अवॉर्ड का सम्मान
हार्लेक्विन चश्मे ( कैट-आई फ्रेम) ने जल्द ही महिलाओं के बीच काफी लोकप्रियता हासिल कर ली और यह 1930 से 1940 के दशक के दौरान अमेरिका में महिलाओं के लिए एक प्रतिष्ठित फैशन बन गया।शिनासी के इस आविष्कार ने उन्हें व्यापक तौर पर पहचान दिलाई और उन्हें साल 1939 में प्रतिष्ठित लॉर्ड एंड टेलर अमेरिकन डिजाइन अवॉर्ड से भी सम्मानित किया गया। इसके अलावा उन्हें वोग और लाइफ जैसी प्रतिष्ठित पत्रिकाओं में भी फीचर किया गया था।
डॉ. एपीजे अब्दुल कलाम: भारतीय वैज्ञानिक का प्रेरणादायी सफर
नई दिल्ली: आज ही के दिन वर्ष 2015 को देश के सबसे विचारोत्तेजक राष्ट्रपति, वैज्ञानिक और भारत रत्न डॉ. एपीजे अब्दुल कलाम का निधन हो गया था. लेकिन आज भी वे देशवासियों के दिल पर राज करते हैं. कभी पैसों के लिए अखबार बेचने वाले अब्दुल कलाम देश के ‘मिसाइल मैन’ कहलाए. खबर में हम जानेंगे कि कैसा रहा डॉ. एपीजे अब्दुल कलाम का प्रेरणादायी सफर. Dr. APJ Abdul Kalam के साथ Google Trends में आज मौसम विभाग की ओर से मुंबई के लिए जारी रेड अलर्ट (IMD Mumbai Red Alert) भी ट्रेंड कर रहा है.
देश का पहला सैटेलाइट लॉन्च व्हीकल (SLV) प्रोजेक्ट के डायरेक्टर अब्दुल कलाम थे. उनकी 10 साल की कड़ी मेहनत के बाद 1980 में SLV का विकास हुआ. इसी एसएलवी की बदौलत आज इसरो (ISRO) कहीं ज्यादा ताकतवर रॉकेट बना रहा है, जिसकी वजह से आज भारत चांद पर पहुंचने के सपने को साकार कर रहा है.
केवल अंतरिक्ष विज्ञान में ही नहीं बल्कि डॉ. कलाम की भारत के परमाणु बम परीक्षण में अहम भूमिका रही. 1998 में अटल बिहारी वाजपेयी का नेतृत्व और अब्दुल कलाम के मार्गदर्शन में पोखरण-2 परमाणु बम परीक्षण किया, जिसके बाद उन्हें उन्हें भारत का बेस्ट न्यूक्लियर साइंटिस्ट कहा गया. जुलाई 1992 से दिसंबर 1999 तक देश के परमाणु परीक्षण विभाग के चीफ भी कलाम रहें.
सिर्फ सैन्य ही नहीं यूनिवर्सिल हेल्थ केयर में भी अब्दुल कलाम का कमाल का योगदान रहा है. कार्डियोलॉजिस्ट डॉ. सोमा राजू के साथ मिलकर उन्होंने बेहद सस्ता कोरोनरी स्टेंट (Coronary Stent) बनाया. इसका नाम कलाम-राजू स्टेंट दिया गया है. इसी की बदौलत आज हार्ट डिजीज वाले लाखों मरीजों का इलाज हो चुका है. साल 2012 में एपीजे कलाम ने डॉ. सोमा राजू के साथ ‘कलाम-राजू टैबलेट’ नाम से छोटा टैबलेट बनाया. रूरल हेल्थ केयर के लिए इसे तैयार किया गया था.
अंतर्राष्ट्रीय चांद दिवस: 54 साल पहले नील आर्मस्ट्रांग ने चांद पर रखा था पहला कदम, इसकी पूरी कहानी जानें
आज का दिन पूरे विश्व के लिए ऐतिहासिक दिन है. मानव सभ्यता ने इस दिन बड़ी उपलब्धि हासिल की थी. आज से ठीक 54 साल पहले अपोलो मून मिशन (Apollo Moon Mission) के लिए अंतरिक्ष यान ने 20 जुलाई 1969 को उड़ान भरी थी. इस यान में अंतरिक्ष यात्री नील आर्मस्ट्रांग (Neil Armstrong), बज एल्ड्रिन और माइकल कोलिंस सवार थे, जो केवल 11 मिनट में ही पृथ्वी से अंतरिक्ष की कक्षा में पहुंच गए थे. अपोलो मून मिशन के लाॅन्च होने के ठीक चार दिन बाद यानी 20 जुलाई को नील आर्मस्ट्रांग ने चांद पर कदम रखा था. इस तरह वे चंद्रमा पर जाने वाले पहले इंसान बन गए थे. इस दिन को ही International Moon Day मनाया जाता है. आइये जानते अपोलो मिशन के बारे में जानते हैं.
पहले इंसान नील आर्मस्ट्रांग ने चांद पर रखा कदम
हर वर्ष 20 जुलाई को चंद्रमा दिवस (Moon Day) मनाया जाता है. यह दिन उस दिन की याद दिलाता है जब मानव ने पहली बार वर्ष 1969 में चंद्रमा पर कदम रखा था. 20 जुलाई को, अमेरिकी अंतरिक्ष यात्री नील आर्मस्ट्रांग और उनके साथी बज़ एल्ड्रिन ने चंद्रमा पर कदम रखा और लगभग 47.5 पाउंड चंद्र सामग्री एकत्र की, जिसे वे पृथ्वी पर अध्ययन के लिए वापस लाए. यह दिन न केवल ऐतिहासिक मिशन का जश्न मनाता है बल्कि वैज्ञानिकों को यह आशा भी देता है कि मनुष्य अब अंतरिक्ष में जा सकते हैं. नील आर्मस्ट्रांग के “मनुष्य के लिए एक छोटा कदम” भाषण ने कल्पनाओं को प्रेरित किया और नवाचार को जन्म दिया और आज यह अंतरिक्ष यात्रा पर काम करने वाले लोगों का आधार बन गया है.
चांद पर आर्मस्ट्रांग ने बिताया था इतना समय
नील आर्मस्ट्रांग और एल्ड्रिन ने चांद पर 21 घंटे से अधिक समय उस स्थान पर बिताया, जिसका नाम उन्होंने ट्रैंक्विलिटी बेस रखा था. इससे पहले कि वे कोलिन्स को कमांड मॉड्यूल कोलंबिया में फिर से शामिल करने के लिए रवाना हुए. अंतरिक्ष में आठ दिन से अधिक समय बिताने के बाद तिकड़ी 24 जुलाई को पृथ्वी पर लौटी और प्रशांत महासागर में उतरी. नासा द्वारा चंद्रमा पर मानव जाति के पहले कदम को अब तक की सबसे बड़ी तकनीकी उपलब्धि बताया गया था.
कब शुरू हुई थी चंद्रमा की खोज
चंद्रमा की खोज तब शुरू हुई जब सोवियत संघ द्वारा लॉन्च किए गए अंतरिक्ष यान लूना 2 ने 14 सितंबर, 1959 को चंद्रमा की सतह पर प्रभाव डाला. पिछले 64 वर्षों में संयुक्त राज्य अमेरिका जैसे विभिन्न देशों से कई और अंतरिक्ष यान लॉन्च किए गए हैं. चंद्रमा और पृथ्वी से उसके संबंध को बेहतर ढंग से समझने के लिए, रूस, यूरोप, जापान, चीन, भारत और इज़राइल। हालाँकि, 20 जुलाई 1969 को यूनाइट्स स्टेट्स के अपोलो 11 मिशन द्वारा चंद्रमा पर पहली मानव लैंडिंग, इन प्रयासों के शिखर का प्रतिनिधित्व करती है.
ये है इस बार का थीम
इस बार अंतर्राष्ट्रीय चंद्रमा दिवस 2023 को ‘मानवता के लिए नई चंद्र यात्रा की शुरुआत’ थीम के आधार पर मनाया जाएगा. अंतर्राष्ट्रीय चंद्रमा दिवस एक वार्षिक कार्यक्रम होगा, जो यूएनओओएसए (UNOOSA) के सहयोग से दुनिया भर में आम जनता के लिए मनाया जाएगा. लोगों को स्थायी चंद्रमा अन्वेषण और चंद्रमा के उपयोग के बारे में सिखाने के लिए कई शैक्षिक और सांस्कृतिक कार्यक्रम आयोजन भी किया जाएगा.
इस दिन से चंद्रमा दिवस मनाने की हुई शुरुआत
मून विलेज एसोसिएशन ने संयुक्त राज्य अमेरिका से अपोलो 11 मिशन के साथ 1969 में पहली मानव लैंडिंग की सालगिरह, 20 जुलाई को अंतर्राष्ट्रीय चंद्रमा दिवस की घोषणा के लिए यूएन-सीओपीयूओएस 64वें सत्र के दौरान एक आवेदन प्रस्तुत किया. इस उद्घोषणा को संयुक्त राष्ट्र महासभा द्वारा 9 दिसंबर 2021 को मंजूरी दे दी गई. जिसके बाद से 20 जुलाई, 2022 से अंतराष्ट्रीय चंद्रमा दिवस मनाने की शुरुआत हुई.
सोशल मीडिया का चश्का बाद कई तरह की मानसिक बीमारियां, देखिये इसके बचने के उपाय
सोशल मीडिया: दूरी कम करें, बीमारियों से मुक्ति पाएं! रिसर्च के अनुसार
सोशल मीडिया, जिसे अधिकांश लोग इस दौर का सबसे बड़ा नशा मानते हैं, अब तक कई नुकसान पहुंचाने का कारण बन चुका है। यहां तक कि इसे एक आदत के रूप में बनाने के बाद भी, इसके नकारात्मक प्रभावों का काफी परिणाम है। एक नई रिसर्च के अनुसार, अगर हम रोजाना सोशल मीडिया का इस्तेमाल 30 मिनट कम कर दें, तो अकेलापन, दुनिया से खो जाने का डर, एंग्जाइटी, और डिप्रेशन की बीमारी से मुक्ति पाई जा सकती है।
एक अध्ययन द्वारा निर्धारित किया गया है कि सोशल मीडिया के इस्तेमाल को कम करने से जीवन की सकारात्मकता में वृद्धि होती है। इसके अलावा, जिन लोगों ने सोशल मीडिया का असंयमित इस्तेमाल जारी रखा, उनमें एंग्जाइटी और डिप्रेशन की स्तर भी बढ़ गई थी। यह अध्ययन हमारे लिए चौंकाने वाला था। शोधकर्ता एला फॉलहेबर ने बताया कि इस अध्ययन का मकसद सोशल मीडिया पर बिताए गए समय को पूरी तरह से कम करना नहीं था, बल्कि इसका परिणाम देखना था कि इससे क्या अंतर पड़ता है। इसके बावजूद, अध्ययन में शामिल लोगों को सोशल मीडिया पर समय कम करना पहले काफी मुश्किल लगा, लेकिन धीरे-धीरे उन्हें इससे खुशी मिलने लगी और सकारात्मक परिणाम देखने को मिला।
यह अध्ययन तब किया गया, जब हाल ही में अमेरिकन साइकलॉजिकल एसोसिएशन ने सोशल मीडिया के इस्तेमाल के बढ़ते नकारात्मक प्रभावों के बारे में चेतावनी दी थी। शोधकर्ताओं ने एक अध्ययन करके 230 कॉलेज स्टूडेंट्स को शामिल किया, जिन्हें रोजाना 30 मिनट तक सोशल मीडिया का उपयोग कम करने के लिए कहा गया। इस प्रयास को दो सप्ताह तक जारी रखा गया और रोजाना की रिपोर्ट देनी होती थी। दो सप्ताहों के बाद किए गए परीक्षणों के आधार पर पाया गया कि इन लोगों में डिप्रेशन और एंग्जाइटी का स्तर बहुत कम था।
इस अध्ययन में शामिल
लोगों के व्यवहार में भी परिवर्तन आया है। इसके बाद उन्होंने बताया कि इस अध्ययन का उद्देश्य सोशल मीडिया पर बिताए जा रहे समय को कम करके पूरी तरह से मुक्त करना नहीं था, बल्कि इसे परीक्षण करना था कि इसका क्या फर्क पड़ा। आरंभ में, अध्ययन में शामिल लोगों को सोशल मीडिया पर समय कम करने में बहुत मुश्किल होती थी, लेकिन धीरे-धीरे प्रयास करने के बाद उन्हें इससे खुशी मिलने लगी और सकारात्मक परिणाम देखने को मिला।
TFM (Total Fatty Matter) मान को देखकर ही चुनें, क्योंकि आप Toilet Soap से नहा रहे हैं
लखनऊ: दिल्ली सरकार ने अधोमानक साबुन और डिटर्जेंट की बिक्री पर रोक लगा दी है, ताकि यमुना नदी को प्रदूषण से बचाया जा सके। अब यूपी में भी पर्यावरणविदों ने उन साबुनों पर रोक लगाने की मांग की है, जिनमें पर्यावरण मानकों के अनुसार कमी पाई जाती है। ऐसे में लोगों के मन में सवाल उठता है कि अधोमानक साबुन क्या होते हैं? क्या हम नहाने के लिए Toilet Soap का इस्तेमाल नहीं कर रहे हैं? अगर हां तो फिर यह हानिकारक हो सकता है। इस तरह के साबुनों में रसायन की मात्रा अधिक होती है जो त्वचा और आंखों के लिए नुकसानदायक हो सकती है। आमतौर पर हम अपने साबुन का चयन विज्ञापन देखकर करते हैं, न कि उसका TFM (टोटल फैटी मैटरियल) प्रतिशत देखकर। नतीजतन हम नहाने के लिए बाजार से Toilet Soap या फिर Carbolic Soap खरीद लाते हैं। इनमें से ज्यादातर साबुन शौच करने के बाद हाथ धोने के इस्तेमाल किये जाते हैं। कई साबुनों में तो जानवरों की चर्बी भी मिली होती है, जिनसे हम अनभिज्ञ होते हैं।
साबुन के प्रकार और TFM वैल्यू
साबुन दो प्रकार के होते हैं: रासायनिक और आयुर्वेदिक/हर्बल। हर साबुन के पैकेट पर उसकी TFM वैल्यू लिखी होती है, जो साबुन की गुणवत्ता और वर्गीकरण का निर्धारण करती है। ज्यादा TFM प्रतिशत वाले साबुनों की गुणवत्ता बेहतर होती है। इसलिए हमें ऐसे साबुन का उपयोग करना चाहिए, जिनमें TFM की मात्रा 76% से अधिक होती है।
टॉयलेट सोप और कार्बोलिक सोप
टॉयलेट सोप को ग्रेड-2 के साबुन में शामिल किया जाता है। ये साबुन 65% से 75% तक TFMहोता है। आमतौर पर ये साबुन शौच करने के बाद हाथ धोने के लिए इस्तेमाल किए जाते हैं। कार्बोलिक सोप को ग्रेड-3 के साबुन में शामिल किया जाता है और इसमें 50% से 60% तक TFM होता है। कार्बोलिक सोप फर्श या जानवरों के शरीर के कीटाणुओं को मारने में उपयोग होता है। इसे यूरोपीय देशों में एनिमल सोप या जानवरों के नहाने का साबुन भी कहा जाता है। त्वचा और आंखों के लिए इस तरह के साबुन नुकसानदायक हो सकते हैं।
रासायनिक साबुनों का नुकसान
साबुनों में झाग बनाने के लिए सोडियम लौरेल सल्फेट रासायन का उपयोग होता है। इससे त्वचा की कोशिकाएं शुष्क हो जाती हैं और इसके कारण त्वचा पर खुजली और दाद की समस्या हो सकती है। यदि नहाने के दौरान साबुन आंखों में चला जाए, तो रासायनिक साबुन के कारण आंखों में जलन हो सकती है। त्वचा रोग विशेषज्ञों का कहना है कि रासायनिक साबुन त्वचा के लिए लाभदायक नहीं हैं। अधिकांश साबुनों में रासायनिक तत्वों का उपयोग होता है।
साबुन में जानवरों की चर्बी
कई साबुनों में जानवरों की चर्बी भी मिली होती है। इसलिए, अगर आप शाकाहारी हैं, तो साबुन खरीदते समय उसके पैकेट को ध्यान से पढ़ें। यदि पैकेट पर टैलो (Tallow) लिखा हो, तो इसका मतलब है कि साबुन में जानवरों की चर्बी का उपयोग किया गया है।
साबुन चयन करते समय ध्यान दें
साबुन को चुनते समय, इसके पैकेट पर दी गई जानकारी को ध्यान से पढ़ें और समझें। आपकी त्वचा के लिए सर्वोत्तम विकल्प का चयन करें और अपने स्वास्थ्य की देखभाल के लिए उचित निर्णय लें।
15 साल से घर में गार्डनिंग, घर में ही उगाए सैकड़ों प्रकार के पेड़-पौधे,देखे देसी जुगाड़
धनबाद के जगजीवन नगर में रहने वाले संजय कुमार मरांडी एक ऐसी शख्सियत हैं जो पर्यावरण के प्रति इतना जागरूक हैं कि उन्होंने अपने घर की छत को ही गार्डन बना डाला. संजय कुमार मारंडी खराब चीजों को इस्तेमाल कर गार्डन की सुंदरता को बढ़ा रहें हैं. संजय कुमार टूटी हुई बोतलें, खराब टायर, टूटे हुए पाइप, घर के टूटे हुए बर्तन, खराब बोतल, सरसों के तेल की बोतल, टूटा हुआ मिट्टी का बर्तन जैसी चीजों का इस्तेमाल करके एक गार्डन को खूबसूरत आकार देने में जुटे हैं.
गार्डन में टमाटर, बैंगन ,मकई जैसी कई सब्जियां
उन्होंने अपने गार्डन में टमाटर, बैंगन ,मकई, करेला, गाजर, भिंडी और भी कई तरह की सब्जियां उगा रखी हैं. साथ ही कई तरह के फूलों का पेड़ भी लगा रखा है. वो, उसके साथ-साथ मुर्गी पालन भी कर रहे हैं ताकि ताजा अंडा और ताजा सब्जियों का सेवन कर घर के लोग स्वस्थ रह सकें. संजय पेशे से राजनीति से जुड़े हुए हैं. राजनीति में व्यस्त रहने के बावजूद पर्यावरण के प्रति उनका लगाव तारीफ के काबिल है.
वृक्ष, पेड़-पौधे की हिफाजत करना जरूरी!
उन्होंने कहा कि अगर आप बागवानी करते हैं तो इसके कई फायदे हैं. उन्होंने कहा कि अगर आप स्वस्थ रहना चाहते हैं तो वृक्ष, पेड़-पौधे की हिफाजत करें और अपने घरों में इसे लगाएं ताकि आपको शुद्ध हवा मिल सके. इसी के साथ आप शुद्ध ताजा सब्जियों का इस्तेमाल भी आप कर सकते हैं. इनका कहना है कि हर नागरिक का कर्तव्य है कि पर्यावरण की हिफाजत करें ताकि हमारा धनबाद, हमारा देश और पूरा विश्व प्रदूषण मुक्त रहे.
15 वर्षों से घर में है हरियाली
संजय कुमार मरांडी ने पिछले 15 वर्षों से अपने घर को हराभरा करा हुआ है. करीब 2000 स्क्वायर फीट में फैले उनके पुरे मकान में जहां भी जाएगी, आपको हरियाली ही नजर आएगी. पूरे घर को सैकड़ों प्रकार के पेड़-पौधे,अनेकों प्रकार के फूल देखने को मिल जाएंगे. इसके साथ ही, उन्होंने बताया कि पर्यावरण को प्रदूषण मुक्त बनाने में पेड़ पौधों की भूमिका अहम है. ज्यादा से ज्यादा पौधे लगाकर अपने घर आसपास में बागवानी करके काफी हद तक प्रदूषण को नियंत्रित किया जा सकता है.
अंतरिक्ष में बढ़ रहा ट्रैफिक कभी भी गिर सकते है करोड़ों रॉकेट-सेटेलाइट के टुकड़े, देखे
नई दिल्ली एलन मस्क और जेफ बेजोस हजारों की तादाद में सेटेलाइट भेजने की तैयारियां कर रहे हैं। ऐसे में स्पेस एजेंसियों की चिंता बढ़ा दी है। लियो लैब नाम की एक कंपनी ने इसका इंटरेक्टिव मैप बनाया है, जो बेहद डराता है। ये मैप बताता है कि अगर समय रहते नहीं चेते तो भयानक परिणाम देखने को मिल सकते हैं। इस लैब ने कचरे पर नजर रखने के लिए अलास्का, टेक्सस, न्यूजीलैंड और कोस्टा रिका में रडार लगाए हैं, जो अंतरिक्ष में कचरे पर नजर बनाए हुए है। यह सिस्टम छोटे से छोटे कचरे को भी डिटेक्ट कर सकता है।
सबसे ज्यादा कचरा फैलाने वाला देश
अंतरिक्ष में सबसे ज्यादा कचरा फैलाने वाला देश अमेरिका है। सिर्फ नासा ही नहीं बल्कि बहुत सारी प्राइवेट कंपनियां भी अंतरिक्ष में सेटेलाइट भेज रही हैं। लियो लैब के मुताबिक अमेरिका की 8497 चीजें अंतरिक्ष में तैर रही हैं। इनमें रॉकेट के टुकड़े, पेलोड और सेटेलाइट का कचरा है, जो पृथ्वी की कक्षा में घूम रहे हैं। दूसरे नंबर पर रूस का नाम है, जिसकी 4836 वस्तुएं स्पेस में बिखरी पड़ी हैं। चीन के भी 4,047 ऑबजेक्ट ब्रह्मांड में घूम रहे हैं। भारत की 143 तो जापान 142 चीजें अंतरिक्ष में हैं।
अंतरिक्ष में बढ़ रहा ट्रैफिक
तमाम देशों के अलावा निजी कंपनियां भी अंतरिक्ष के लिए प्रोजेक्ट चला रहे हैं। इससे विशेषज्ञों को अंतरिक्ष में सेटेलाइट ही सेटलाइट भरने की आशंका होने लगी है। एलन मस्क के स्पेस एक्स ने 12 हजार से ज्यादा सेटेलाइट्स लॉन्च करने की योजना बनाई है और अभी तो उसने महज 4000 की ही शुरुआत की है। वहीं अमेजन के फाउंडर जेफ बेजोस भी 3 हजार से ज्यादा सेटेलाइट लॉन्च करना चाहते हैं।
अंतरिक्ष में इतनी ज्यादा सेटेलाइट होने लगी हैं, उनके आपस में टकराने का खतरा पैदा हो गया है। डेली मेल की खबर के अनुसार शोधकर्ताओं ने पाया कि हर हफ्ते स्टारलिंक की औसतन 1600 सेटेलाइट्स पर किसी दूसरी से टकराने का खतरा बना रहता है। दो मौके तो ऐसे आए जब दो सेटेलाइट्स के बीच महज की दूरी एक किलोमीटर से भी कम थी।
यूरोपीय अंतरिक्ष एजेंसी के एक अनुमान के मुताबिक पृथ्वी की कक्षा में इस समय 10,800 टन (करीब 98 लाख किलो) कचरा बिखरा हुआ है। इनमें से 200 तो ‘सुपर स्प्रेडर’ हैं। ये ‘सुपर स्प्रेडर’ दरअसल बड़े-बड़े रॉकेट हैं, जो टूटकर हजारों टुकड़ों में बिखर सकते हैं। इससे केसलर सिंड्रोम जैसी स्थिति बन सकती है। मतलब अंतरिक्ष में इतना ज्यादा मलबा कि वो सेटेलाइट्स और रॉकेट को नुकसान पहुंचा सकता है।
एक अनुमान के मुताबिक अंतरिक्ष में 17 करोड़ से ज्यादा ‘अंतरिक्ष कचरा’ तैर रहा है। इनमें से महज 27 हजार का ही अभी तक पता चल सका है। ये टुकड़े बड़ा नुकसान पहुंचा सकते हैं क्योंकि इनकी स्पीड करीब 27 हजार किलोमीटर प्रति घंटे की है। यह स्पीड इतनी ज्यादा है कि एक छोटा सा टुकड़ा भी किसी रॉकेट या सेटेलाइट को तबाह कर सकता है। कई मौकों पर धरती पर भी स्पेस का कचरा आकर गिरा है।
#international #love #music #worldwide #instagram #travel #world #photography #art #india #fashion #usa #instagood #hiphop #business #global #online #artist #imun #uk #like #follow #news #education #lifestyle #africa #model #canada #dance #london