मथुरा के बाद डोंगरगढ़ प्रसिद्धः गोविन्दोत्सव
मां चम्लेश्वरी देवी की पावन नगरी एवं नए छत्तीसगढ़ राज्य के डोंगरगढ़ में प्रतिवर्ष अनेक धार्मिक उत्सव धूमधाम से मनाए जाते हैं। इनमें "गोविन्दोत्सव भी सर्वप्रमुख एवं प्राचीन उत्सव है गीविन्दोव्यय अंचल के नागरिकों द्वारा पिछले 100 वर्षो से लगातार उत्याहपुर्वक मनाया जा रहा है। इस उत्सव को प्रारंभ करने का श्रेय बाबूराव अन्नाजी को हैं. उनके पश्चात मदन गोपाल । गट्टानी ने लगभग 14 वर्षों तक इस उत्सव का संचालन किया, और उनका देहावसान होने के बाद उनके सुपुत्र रामानंद गट्टानी ने लगभग 40 वर्षों तक लगातार सफलतापूर्वक इसका संचालन किया। रामानंद गट्टानी के देहावसान के पश्चात डोंगरगढ़ के नागरिकों ने एक राय से डोंगरगढ़ के इस अनुठे, प्राचीन, आत्मीय लगाव वाले पारम्परिक गोविन्दा उत्सव के संचालन का गुरुत्तर दायित्व उनके ज्येष्ठ सुपुत्र प्रकाशचंद गट्टानी को सौपा।
श्री गट्टानी विगत 25 वर्षों से लगातार इस उत्सव का सामनतापूर्वक संचालन कर इस अंचल की सांस्कृतिक विरासत एवं गरिमा को बनाए हुए है।
सहयोग से कुशल संचालन कर रहे हैं। गोविन्दोत्सव, भगवान श्री कृष्णा के जन्म लेने की खुशी में प्रति वर्ष भादो माह में जन्माष्टमी के दूसरे दिन भादवा कृष्ण नवमी को पारम्परिक उल्हासमय वातावरण में धूमधाम से मनाया जाता है। इस उत्सव की प्रारंभिक तैयारी काफी पहले ही शुरू हो जाती। जन्माष्टमी के दिन स्थानीय प्राचीन महावीर मंदिर में पूजा अर्चना के बाद श्री गोविंद भगवान की स्थापना की जाती है, उसके बाद निरंतर 24 घंटे तक श्री गोविंद भगवान के नाम पर रात और दिन मंदिर परिसर में आयोजित अखण्ड हरी कीर्तन में नगर के लोग उत्साहपूर्वक शामिल होते हैं। गोविन्दोत्सव के समय सारा नगर, स्वागत द्वारों, तोरणों एवं झंडियों से भगवान के जुलूस के स्वागत में नई नवेली दुल्हन की । भाँति सजा, दिया जाता है, नगर के सभी मोहल्ले के लोग इसमें उत्साहपूर्वक भाग लेते हैं. सभी के चेहरे, गुलाल, अबीर से रंगे हुए होते हैं, दूर-दूर से आए हुए दर्शनार्थियों की विशाल संख्या एक ओर जहां भगवती बम्लेश्वरी देवी के दर्शन कर पुण्य लाभ प्राप्त करती है तो दूसरी ओर गोविन्दोत्सव का आनंद उठाती है।
जब गोविन्दों की अनेक टोलियां रंग
गुलाल अबीर उड़ाती हुई, मधुर स्वरों में कीर्तन गाते हुए, सड़कों पर नाचते. गाते, उछलते, कूदते हुए, कंधों पर चढ़ते, डालियों पर लटकते ए दही, प्रसाद को हंडियां लूटते हुए दिखाई देती है से बरबस भगवान श्री कृष्ण की बालपन में अपनी सखाओं के साथ मथुरा-वृंदावन में की गई लीला स्मरण हो आती है एवं ऐसी अनुभूति होती है कि सचमुच वृंदावन विहारी है, जो आज भी यहां किसी किसी रूप में अपने भक्तों के साथ लीला विहार करता है। सचमुच छत्तीसगढ़ प्रदेश का यह नववृंदावन ही
जन्माष्टमी के दूसरे दिन महावीर मंदिर में 24 घंटे के अखंड हरी संकीर्तन की समाप्ति होती हैं, एवं गोविन्दोत्सव प्रारंभ, हो जाता है, दोपहर 12 बजे महावीर मंदिर से श्री। गोविंद भगवान का भाग डोला जुलूस निकलता है। भगवान के डोले के आगे भजन मंडलियां,' ढोल-नगाड़ा, बैंड पार्टियां रहती है दहीप्रसाद हांडियां लूटने वाले गोविंदो की टोलियां। रहती है, दर्शनार्थी भी काफी संख्या में साथ रहते हैं, व्यवस्था बनाए रखने के लिए मजिस्ट्रेट, पुलिस, एन. सी. सी. के छात्र, रेडक्रास व प्राथमिक उपचार की व्यवस्था के साथ डाक्टर एवं एंबुलेंस वाहन भी साथ रहती है। सर्वप्रथम गोविंद भगवान का भव्य जुलूस बाजे-गाजे एवं गोविन्दों की टोलियों के साथ हंडियां लुटता हुआ, महावीर पारा से आदर्श नगर, कचहरी कोर्ट, रोड सिविल लाइन होते हुए ठेठवारपारा पहुंचता है. हंडियों की लूट प्रारंभ हो जाती है, लोग आत्मविभोर हो जाते हैं, और ऐसा प्रतीत होता है, मानो स्वयं भगवान श्रीकृष्ण अपने सखाओं, ग्वालों के साथ दहीमाखन लूट रहे हो, गोविंदो की टोलियां जिस समय सामूहिक रूप से। गोविंदा-गोविंदा का उद्घोष करती है तो सारा आकाश मंडल उनकी रकतल ध्वनि से गुंजायमान हो उठता है, एवं संपूर्ण वातावरण
भगवान श्रीकृष्ण के रंग में रंग जाता है।
भगवान का जुलूस नाचता-गाता कीर्तन करता हँडियां प्रसाद लूटता आगे बढ़ता हुआ क्रमशः भगतसिंह वार्ड से गोल बाजार, पुराने बस स्टैण्ड चौक से एकबत्ती पांच रास्ता होते हुए लगभग 2 बजे दोपहर में भंडारी चाल पहुंचता है, यहां सभी के लिए पानी-चाय वगैरह की निशुल्क व्यवस्था रहती है। इसके बाद जुलूस बुधवारीपारा होते हुए रेलवे कालोनी क्षेत्र में दही हंडियां लूटते हुए शाम 4.30 बजे रेलवे चौक पहुंचता है, जहां दही प्रसाद की हंडियों के साथ ही एक ऊंचे खंभे में चिकनाई लगाकर खंभे के ऊपरी छोर में सरेस से रूपिया, प्रसाद, नारियल आदि लगा देते हैं, चिकनाई व ऊंचाई होने से लक्ष्य तक पहुंचने में बहुत कठिनाई होती है, फिर भी वे गोविंद भगवान का जयघोष करते हुए लक्ष्य तक पहुंच ही जाते हैं।
गोविंदोत्सव जुलूस स्टेशन रोड से होते हुए गोल बाजार की ओर अग्रसर होता है, इस मार्ग में वृक्षों की संख्या कम है, फिर भी श्रद्धालु लोग अपने अपने मकानों की छतों से मिठाई की पुड़िया, फ्ल, प्रसाद, पैसा आदि लुटाते हैं, स्वागत द्वारों द्वारा सैकड़ों है। की संख्या में हंडिया लुटाते हैं, पूरे शहर में दही प्रसाद की हंडियां लुटाई जाती है, शहर का ऐसा कोई हिस्सा नहीं है, जहां इसे उत्साहपूर्वक नहीं मनाया जाता हो। शहर के सभी धर्म, संप्रदाय एवं सभी वर्ग के लोग बिना किसी ऊंचनीच, अमीर-गरीब के भेदभाव के श्रद्धापूर्वक, उमंगपूर्वक इस उत्सव में शामिल होकर सहयोग देकर उत्सव का आनंद उठाते हैं, यह इस उत्सव की विशेषता है। क्रमशः जुलूस सिनेमा चौक से आगे बढ़ता हुआ, जयस्तंभ चौक होता हुआ, संध्या 4 बजे गोल बाजार पहुंचता है. यहां इस उत्सव की शोभा देखते ही बनती है, यहां भारी संख्या में हंडियां लुटाई जाती है, यहां दर्शनार्थियों की भीड़ इतनी ज्यादा हो जाती है कि पूरा क्षेत्र खचाखच भर जाता है, लोग घरों-छतों पर से इस अपूर्व उत्सव का आनंद लेते हैं, यहां का दही हंडी लूट का दृश्य एवं भगवान के जुलूस की शोभा देखते ही बनती है, इसके बाद भगवान का जुलूस डोला लगभग शाम 6.30 बजे वापस महावीर मंदिर पहुंचता है, जहां गोविंद भगवान की अ.रती प्रसाद वितरण एवं आभार प्रदर्शन के पश्चात् इस गरिमामय उत्सव की समाप्ति होती है। गोविंदोत्सव का इस अंचल के लोगों से आत्मीयतापूर्ण लगाव है. सभी लोगों के सहयोग सक्रिय भागीदारी एवं योग्य- कुशल संचालन से इसके स्वरूप में निखार ही आया
इस क्षेत्र में इस उत्सव के महत्व को देखते हुए शासन हमेशा उत्सव के दिन डोंगरगढ़ तहसील में स्थानीय अवकाश घोषित करती है। म.प्र. शासन ने गोविंदोत्सव की न्यूजरील भी तैयार कराई थी, जिसे देखकर सभी ने सराहा था। मां बम्लेश्वरी की इस पावन नगरी में, सचमुच गोविंदोत्सव का अपना विशेष महत्व है, सभी बड़ी बेसब्री से इस उत्सव की प्रतीक्षा करते हैं।