छत्तीसगढ़ / दुर्ग

दो प्रकार का होता है संसार - भीतर एवं बाहर - सुश्री धामेश्वरी देवीजी

भिलाई, लक्ष्मीनारायण मंदिर प्रांगण, अनुष्ठा रेसीडेंसी, जुनवानी खम्हारिया रोड नियर स्मृति नगर में चल रही दिव्य आध्यात्मिक प्रवचन श्रृंखला के पॉंचवें दिन, जगद्गुरुत्तम श्री कृपालु जी महाराज की प्रमुख प्रचारिका सुश्री धामेश्वरी देवी जी ने वेदों के अनुसार संसार के स्वरूप को स्पष्ट किया। उन्होंने बताया कि वास्तव में दो प्रकार का संसार होता है, एक भीतर का संसार, दूसरा बाहर का संसार। कुछ ज्ञानी लोग कहते हैं कि संसार मिथ्या है और कुछ कहते हैं कि संसार सत्य है, ये दोनों बातें वेदों शास्त्रों के अनुसार सही सिद्ध हो जाती हैं। वास्तव में हमारे मन में काम, क्रोध, लोभ, मोह, अहंकार आदि माया के विकार होते हैं। साथ ही मन सतोगुणी, रजोगुणी और तमोगुणी, तीन तरह की माया के अधीन रहता है इसी कारण हमारे मन के विचार प्रतिक्षण बदलते रहते हैं और यही कारण है कि संसार में किसी की किसी से नहीं पटती अर्थात् विचारों में आपसी मतभेद रहता है। यह भीतर का संसार हमारे लिए ज्यादा खतरनाक होता है क्योंकि जैसे मानसिक विचार होते हैं वैसे ही व्यक्ति की प्रवृत्तियां हो जाती है कोई सतोगुणी, कोई रजोगुणी तो कोई तमोगुणी दिखाई पड़ता है। इसके विपरीत बाहर का संसार हमारे भौतिक शरीर को चलाने के लिए ईश्वर द्वारा बनाया गया है। बाहरी संसार सत्य है क्योंकि वह सदैव समान बना रहता है, पंचतत्व का हमारा शरीर, पंचतत्व के बने इस सत्य संसार से ही ठीक ठीक चलता है।

देवी जी ने बताया कि कोई भी संसारी विचार मन में आते ही मन को वहां से हटाकर तुरंत भगवान् में लगाना है। संसार से मन हटाना और भगवान् में मन लगाना, निरंतर इसका अभ्यास करना होगा तभी अनादिकाल से संसार में आसक्त मन धीरे-धीरे भगवान् में लगने लगेगा और वास्तविक गुरु की कृपा से मन पूर्ण रूप से भगवान् के शरणागत हो जाएगा। संसार के स्वरूप का वेद शास्त्र आधारित और भी विवरण आगे प्रवचन में बताया जायेगा। दिव्य आध्यात्मिक प्रवचन श्रृंखला का आयोजन दिनांक 14 मई 2025 तक प्रतिदिन शाम 7 से रात 9 बजे तक होगा

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