छत्तीसगढ़ इतिहास

जशपुर के अनोखे नागलोक की कहानी

तपकरा,आम तौर पर सांप का नाम लेने के साथ ही बदन में सिहरन पैदा हो जाती है और अगर सामने नाग दिख जाए तो ऐसा लगता है कि मानों मौत से साक्षात्कार हो गया। ज्यादातर मामलों में या तो सांप को मार दिया जाता है या तो फिर सांप लोगों को डस लेता है। कुल मिलाकर यहां के निवासियों की जिंदगी हमेशा सांपों के आसपास की गुजरती है।

दरअसल, बात जशपुर की हो रही है जिसे लोग आज भी 'नागलोक' के नाम से जानते हैं। आदिवासी बहुल और जंगलों से घिरा जशपुर में प्राय: हर इलाके में सांप मिल जाते हैं, लेकिन फरसाबहार से लेकर तपकरा तक इलाका ऐसा है जिसे आज भी लोग नागलोक से जानते हैं। यहां पर कुल 40 प्रजाति के सांप हैं जिनमें करीब 4-5 प्रजातियों के सर्प विषधर हैं। ऐसे में बारिश में इस इलाके नें नंगे चलना का मतलब मौत को दावत देना है।

आज से दो साल पहले तक औसतन 100-150 लोगों की मौत सांप या किसी विषैले जीव के काटने से हो जाती थी, अभी ये आंकड़ा 50-70 है। परंतु क्या ये काफी है कि किसी भी स्थान को सांपलोक या नागलोक रूप में घोषित करने के लिए।

सांपलोक या नागलोक
जशपुर में सांप के काटने से मरने वालो सर्वाधिक मौत करैत सांप के काटने से होती है। फिर भी लोग इसे करैत लोक या सांपलोक के बजाए नागलोक कहना पसंद करते हैं, ऐसा क्‍यों? ये सवाल किसी के भी जेहन में उठ सकता है।

नागलोक के पीछे का रहस्य
जंगलों से घिरा जशपुर का तपकरा इलाका आज भी काफी पिछड़ा हुआ है, जिसके कारण किंवदंतियों, परीकथाओं और जादुई तिलस्म जैसे तमाम चीजों का बोलबाला है। तपकरा के ठीक बीचों-बीच जंगल को चीरते हुए इव नदी बहती है। एक छोड़ पर प्राचीन महादेव मंदिर है तो करीब दूसरी ओर पहाड़ पर करीब 400 मीटर दूर गुफा का द्वार, जिसे कोतेविरा या कपाट द्वार या पातालद्वार या पाताल गेट कहा जाता है। फिलहाल इस गुफा के गेट पर एक बड़ा सी चट्टान है जिसके कारण गुफा बंद है। स्‍थानीय लोगों का कहना है कि जो भी इस गुफा में गया, वो आज तक नहीं लौटा।

आस्था का केंद्र है रहस्यमय शिव मंदिर
मंदिर के बारे में तमाम तरह की जातक कथाएं प्रचलित है। कोई इसे द्वापर युग से जोड़ता है तो कोई इसे त्रेता युग से।

राम और शूर्पनखा करते थे शिव की पूजा
स्थानीय लोगों की माने तो जशपुर का समूचा इलाका दंडकारण्य वन में पड़ता था। यहां पर रावण की बहन शूर्पनखा का राज चलता था। वो शिव भक्त थीं, चिरैय डांड नामक जगह पर वो भगवान महादेव की पूजा करती थी। वनवास के दौरान भगवान श्रीरामचंद्र सीता माता के साथ इव नदी के किनारे बने मंदिर में पूजा करते थे। पाताल द्वार से नागराज आकर तब तक उन लोगों की रक्षा करते थे। रामचंद्र के जाने के बाद भी शिव लिंग के पास नाग पहरा देते रहते थे। कई लोगों ने यहां तक बताया कि मंदिर में उन्होंने शिवलिंग के पास काले नाग को देखा है।

पाताल द्वार का महाभारत कनेक्शन
लोक मान्‍यताओं के अनुसार द्वापर युग में जब भीम छोटे थे, तब दुर्योधन ने षडयंत्र कर धोखे से उन्हें जहरीली खीर खिला दी थी। इसके बाद मरनासन्न भीम को नदी में बहा दिया। कहते हैं कि मृत अवस्था में भीम बहते- बहते इव नदी में आ गए थे, जहां पर नदी में स्नान कर रही नाग कन्याओं की नजर उस पर पड़ गई। इसके बाद नागलोक ले जाकर इलाज के बाद भीम को नई जिंदगी मिली और लौटते समय भीम को हजार हाथियों का बल नागलोक के राजा से मिला। इसके बाद से इंसानों के लिए नागलोक में प्रवेश वर्जित कर दिया गया। तब से आज तक जो भी गया, वापस नहीं लौटा।

करैत के कारण ज्यादा मौतें
स्थानीय पत्रकार  का कहना है कि बाहरी शख्‍स के लिए नागलोक या करैतलोक या सांपलोक पर बहस और विवाद हो सकता है, लेकिन स्थानीय लोगों के लिए नहीं। सामाजिक कार्यकर्ता के रूप में पहचान स्थापित कर चुके अमानुलहक का कहना है कि यहां पर लोगों की मौत सांप काटने से इसलिए होती है क्योंकि वे नंगे चलते हैं और जमीन पर सोते हैं। सांप कोल्ड ब्लडेड होते हैं। बारिश के समय में उनके बिलों में पानी भर जाता है। कई बार गर्मी पाने के लिए सांप सोते हुए व्यक्ति के बिस्‍तर पर आ जाता है। ऐसे में पैर या हाथ लग जाने के कारण सांप उसे काट लेता है।

 संस्थान के सांप पकड़नेवाले विशेषज्ञ  कि उन्होंने जशपुर के कुनकुरी से लेकर तपकरा तक की यात्रा कर वहां की जमीन देखी है। मिट्टी भुरभुरी और पथरीली है। पहले जंगल काफी घना था, लेकिन अब काफी कट गए, ऐसे में सांप जाए तो जाए कहां। रही बाद करैत के डसने की तो ये अक्‍सर सुप्त सांपों की कैटेगेरी में आते हैं और रात को जब लोगों को डसते हैं तब पता भी नहीं चलता है। यदि कोबरा डसता है तो वो फुंफकारता है और लोग डर जाते हैं। इसलिए करैत काटने से ज्यादा मौतें होती हैं।

Leave Your Comment

Click to reload image