छत्तीसगढ़ इतिहास

छत्तीसगढ रायपुर में स्थित महादेव घाट, हरिद्वार की तर्ज पर खारुन नदी के ऊपर बना है लक्ष्मण झूला

रायपुर। जयस्तंभ चौक से 10 किलोमीटर और रेलवे स्टेशन, बस स्टैंड से 12 किलोमीटर की दूरी पर कलकल, छलछल बहती है खारुन नदी। इसी के किनारे स्थित है पर्यटन और धार्मिक आस्था का केंद्र महादेव घाट। यहां प्राचीन हटकेशवर महादेव मंदिर है।

महादेव घाट पर एक ओर जहां भोलेनाथ के दर्शन करने के लिए लोग उमड़ते हैं, वहीं पिकनिक मनाने के लिए भी परिवार समेत लोग पहुंचते हैं। हरिद्वार की तर्ज पर खारुन नदी के ऊपर बना लक्ष्मण झूला और नौकायन का आनंद भी यहां का विशोष आकर्षण है।
 
लक्ष्मण झूला के नीचे पर्यटकों के लिए 50 से अधिक सजी-धजी नौकाओं की व्यवस्था है। इन नौकाओं में बैठकर पर्यटक नदी की बीच धारा तक जाकर प्रकृति के अद्भुत नजारे का आनंद ले सकते हैं। नौका में संगीत की मधुर धुनें गूंजती रहती हैं। एक यात्री मात्र 20 रुपये अदा करके नौकायन का लुत्फ उठा सकता है। कुल पांच लोग नौका में सवार होते हैं।

झूले के ऊपर से होकर नदी के उस पार जाने पर मनमोहक गार्डन देखने को मिलता है। यहां बच्चों के साथ पिकनिक मनाने का आनंद लिया जा सकता है। इस पुल के बीच में खड़े होकर लोग बहती नदी एवं प्राकृतिक सौंदर्य का नजारा लेते नजर आते हैं। गार्डन में अनेक झूले और सेल्फी जोन है, जहां से युवक-युवतियां प्रकृति के बीच रहकर फोटो खिंचाने में रुचि लेते हैं।

एक किमी लंबी सीढ़ियों पर बैठकर देखें नजारा

महादेव घाट की ऊंची सीढ़ियों के किनारे बैठकर भी नदी का मनमोहक नजारा देखा जा सकता है। लगभग एक किलोमीटर तक लंबी सीढ़ियों पर रविवार एवं पर्व त्योहारों के दिन भीड़ रहती है, दूर-दूर तक बैठकर लोग नौकायन कर रहे सैलानियों के वापस आने का इंतजार करते हैं, ताकि वे भी जा सकें। खारुन के किनारे साल में तीन बार भव्य मेले का आयोजन किया जाता है।

आसपास के ग्रामीण इलाकों से हजारों लोग मेला घूमने आते हैं। मनोरंजन के लिए झूले, खेल तमाशा के साथ खरीदारी करते हैं। पहला मेला महाशिवरात्रि, दूसरा हिंदू संवत्सर के माघ महीने की पूर्णिमा और तीसरा मेला कार्तिक पूर्णिमा पर लगता है। शरद्धालु नदी में पुण्य की डुबकी लगाते हैं और महादेव का दर्शन लाभ लेते हैं।
 
हटकेशवर नाथ मंदिर में लगती है कांवरियों की भीड़

महादेवघाट में सैकड़ों साल पुराने हटकेशवर नाथ महादेव मंदिर में सावन के महीने में खासकर रविवार, सोमवार को हजारों कांवरिए शिवलिंग पर जल अर्पण करने आते हैं। हटकेशवर महादेव मंदिर के पुजारी पं. सुरेश गिरी गोस्वामी ने बताया कि शरीमद्भागवत गीता के पांचवें स्कंध के 16 वें और 17वें शलोक में हटकेशवर नाथ का उल्लेख है। इसमें कहा गया है कि हटकेशवर नाथ अतल लोक में अपने पार्षदों के साथ निवास करते हैं। जहां स्वर्ण की खान पाई जाती है। मान्यता है कि हजारों साल पहले मंदिर के किनारे स्वर्ण पाया जाता था।

द्वापर युग की द्वारकी नदी है खारुन नदी

वर्तमान में बहने वाली खारुन नदी को द्वापर युग में द्वारकी नदी के नाम से जाना जाता था। कालांतर में महाकौशल प्रदेश के हैहयवंशी राजा ब्रह्मदेव जब नदी किनारे स्थित घनघोर जंगल में शिकार करने आए थे, तब नदी में बहता हुआ पत्थर का शिवलिंग नजर आया। इस शिवलिंग पर नागदेवता लिपटे थे। राजा ने नदी किनारे मंदिर बनवाकर शिवलिंग स्थापित करवाया। ऐसी मान्यता है कि बाद में 1402 में कल्चुरि शासक भोरमदेव के पुत्र राजा रामचंद्र ने मंदिर का नव निर्माण करवाया।

हर की पौड़ी की तरह अस्थि विसर्जन

खारुन नदी के किनारे ही शमशानघाट है, जहां अंतिम संस्कार के बाद लोग खारुन नदी में उसी तरह अस्थियों का विसर्जन करते हैं, जैसे हरिद्वार स्थित हर की पौड़ी में किया जाता है। महादेव घाट को छत्तीसगढ़ का मिनी काशी भी कहा जाता है। नदी के उस पार 20 फीट ऊंची खारुणेशवर महादेव की प्रतिमा दर्शनीय है। समीप ही वैष्णो धाम मंदिर निर्माणाधीन है, इस मंदिर की शीघ्र ही प्राण प्रतिष्ठा की जाएगी।

छोटे-बड़े करीब 50 से अधिक मंदिर

महादेवघाट शिव मंदिर के आसपास छोटे-बड़े करीब 50 से अधिक मंदिर हैं। इनमें काली मंदिर, राधा-कृष्ण मंदिर, कुम्हार मंदिर, संगमरमर से बना हनुमान मंदिर, सांई मंदिर, संत कबीरदासजी के चार कानों वाले घोड़े की समाधि आदि प्रसिद्ध है। इसे चौकन्नो घोड़े की समाधि कहा जाता है। इस समाधि का गुंबद संत कबीर साहेब की टोपी के रूप में बनाया गया है।

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