व्यापार

युद्ध की आशंका से बाजार लड़खड़ाया, निवेशक न घबराएं क्योंकि भारत की ग्रोथ है इसकी सबसे बड़ी ताकत

पश्चिम एशिया में इस्राइल और ईरान के बीच लड़ाई तेज होने की आशंका का असर डोमेस्टिक स्टॉक मार्केट्स पर भी पड़ा है। भारत में BSE और NSE के संवेदी सूचकांक (सेंसेक्स और निफ्टी) पर पिछले कुछ दिनों से दबाव बना हुआ है। शुक्रवार को भी इनमें भारी उतार-चढ़ाव बना रहा और इस दिन संवेदी सूचकांक 1% की गिरावट के साथ बंद हुए। 

क्या हैं संकेत

भारतीय बाजार में जो हो रहा है, उससे आने वाले वक्त के बारे में संकेत मिलते हैं। विदेशी पोर्टफोलियो निवेशकों (FPI) ने गुरुवार को 15,243 करोड़ की बिकवाली की। वहीं, घरेलू संस्थागत निवेशकों ने 12,914 करोड़ की खरीदारी। अगर घरेलू संस्थागत निवेशकों का सहारा नहीं मिला होता तो भारतीय बाजार में कहीं बड़ी गिरावट आती। 

FPI का मूड

दुनिया के बड़े बाजारों में भारतीय शेयर बाजार सबसे महंगा है, जबकि हाल ही में बड़े राहत पैकेज का एलान करने वाले चीन का बाजार वैल्यूएशन के लिहाज से काफी आकर्षक। इस वजह से विदेशी निवेशक कुछ पैसा भारत से निकालकर चीन में लगा रहे हैं क्योंकि उन्हें आने वाले वक्त में वहां से बेहतर रिटर्न की उम्मीद है। इस बीच, जापान में नए प्रधानमंत्री के आने के बाद ब्याज दरों में बढ़ोतरी के कयास लगाए जा रहे हैं। अगर ऐसा हुआ तो येन कैरी ट्रेड घटेगा। इससे भी बाजार पर बुरा असर पड़ेगा।

MF के पास काफी नकदी

इधर, इस्राइल-ईरान के बीच तनाव बढ़ने से मार्केट का मूड और बिगड़ा है। लेकिन अच्छी बात यह है कि अगस्त के आखिर तक भारतीय म्युचुअल फंडों के पास 1.86 लाख करोड़ का कैश था। उन्होंने यह पैसा इसलिए बचाया हुआ है ताकि वैल्यूएशन कम होने पर वे खरीदारी कर सकें। इसलिए आने वाले वक्त में अगर मार्केट और गिरता है तो उनकी ओर से इसे सपोर्ट मिलेगा।

तेल की कीमतें बढ़ेंगी

लेकिन पश्चिम एशिया में संघर्ष तेज होने से भारत के सामने कुछ मैक्रो चुनौतियां आ सकती हैं। पहली, अगर इस्राइल ने ईरान के तेल-गैस ठिकानों पर हमले किए तो अंतरराष्ट्रीय बाजार में इनकी कीमतें बढ़ेंगी, जो भारतीय इकॉनमी के लिए बुरी खबर होगी। भारत अपनी जरूरत का 80% तेल आयात करता है। साथ ही, संघर्ष तेज होने से भारत से एक्सपोर्ट भी प्रभावित हो सकता है।

स्ट्रक्चरल तेजी

सबसे बड़ी बात यह है कि भारत में स्ट्रक्चरल तेजी है। इसकी इकॉनमिक ग्रोथ दुनिया के बड़े देशों में सबसे तेज बनी हुई है। जल्द ही यहां ब्याज दरों में कमी की उम्मीद है, जिससे कंपनियों की दिलचस्पी कर्ज लेकर बिजनेस में निवेश करने में बढ़ेगी और कंस्यूमर्स की ओर से डिमांड बढ़ेगी। अगर ग्रोथ तेज बनी रही और घरेलू निवेशकों की ओर से पैसा आता रहा तो भारतीय बाजार में मजबूती आगे भी बनी रहेगी।

 

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